Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-५)

१७६ क्या चिन्ता? ऐसी आकुलता क्या करता है? यह जानुँ, यह जानुँ, यह जानुँ ज्ञेयको जाननेकी आकुलता मत करो। आकुलता करनेसे जाननेमें नहीं आता। ज्ञेय जाननेकी आकुलता नहि कर। जो एकको जानता है, वह सबको जानता है। सब जाननेकी आकुलता करता है, वह अपनेको नहीं जानता है, परको नहीं जानता है। एक आत्माको जानो, बस! उसमें सब आ जाता है।

जाननेका राग मत करो। स्वरूपमें लीन हो जाओ तो स्वभावका नाश नहीं होता है। उसमें जो ज्ञान है वह प्रगट हो जाता है। निर्मल ज्ञान। एक आत्माको जानो। ज्ञेय जाननेकी आकुलता मत करो। एक आत्माको जानो। उसमें सब आ जाता है।

मुमुक्षुः- ३१वीं गाथामें (आता है), जे इन्दिय जिणित्ता-इन्द्रियोंको जीतनेवाला जिन है। खण्ड ज्ञानको जीतनेवाला कैसा? भावइन्द्रियको जीतनेवाला कैसा? उसका खुलासा।

समाधानः- बाहर खण्ड खण्ड उपयोग जाता है। वह उपयोग जो है, वह खण्ड खण्ड जाता है तो आकुलता होती है। अधूरा ज्ञान अपना स्वभाव नहीं है। अखण्ड आत्मा पर दृष्टि करो। मैं अखण्ड हूँ। खण्ड खण्ड आत्माका पूरा स्वभाव नहीं है। वह तो क्षयोपशम ज्ञान है। क्षयोपशम ज्ञानसे दृष्टि उठा ले। वह तो क्षयोपशम ज्ञान है। क्षायिक ज्ञान भी एक पर्याय है। एक पारिणामिकभाव अनादिअनन्त चैतन्य ज्ञायकस्वभाव पर दृष्टि करो, बस! वही जितेन्द्रिय, जिन है। ज्ञायक स्वभाव पर दृष्टि करो। क्षयोपशमभाव परसे दृष्टि उठा ले। एक क्षयोपशम ज्ञानकी क्या महिमा है? वह तो आकुलता है, क्रमवाला ज्ञान है। इहा, अवाय और धारणा ऐसे ज्ञानमें आकुलता होती है। ऐसे ज्ञान पर दृष्टि मत करो। एक अखण्ड पर दृष्टि करो। बीचमें तो आता है, उसको जान लो। खण्ड खण्ड उपयोग तो, जबतक पूर्ण नहीं हो जाता, तब क्षयोपशम ज्ञान तो रहता है। क्षयोपशम ज्ञान तो मुनिओंको भी रहता है। परन्तु उस पर दृष्टि नहीं करते। अखण्ड ज्ञान पर दृष्टि देते हैं। फिर मुनिओंको श्रुतज्ञान प्रगट होता है। उस पर दृष्टि नहीं करते हैं तो श्रुतज्ञानकी लब्धि प्रगट होती है। चौदह पूर्व ग्यारह अंगका ज्ञान प्रगट हो जाता है, भावलिंगी मुनिको। क्षयोपशम ज्ञान पर वे दृष्टि नहीं देते हैं, तो भी उघाड हो जाता है। बीचमें ऐसी श्रुतज्ञानकी लब्धि (प्रगट होती है)। उसमें जो शक्ति भरी है तो निर्मलता प्रगट होती है, उसमें सब प्रगट होता है।

उसका नाश नहीं होता है, परन्तु उस परसे दृष्टि हटा दे, उसकी महिमा हटा दो, उसको जाननेकी आकुलता छोड दो। फिर सहज हो जाता है तो हो जाता है। अखण्ड पर दृष्टि देनेसे केवलज्ञान प्रगट हो जाता है। केवलज्ञान पर भी दृष्टि मत दो, वह तो प्रगट हो जाता है। बीचमें आत्माकी जो विभूति है वह सब प्रगट हो जाती है। उसका नाश नहीं होता।