(સારાંશ) અનંતકાલસે દુઃખ ભોગ રહે હૈ ઉસકે અભાવકા ઉપાય બતાઈયે . 0 Play (सारांश) अनंतकालसे दुःख भोग रहे है उसके अभावका उपाय बताईये । 0 Play
વચનામૃતમેં આતા હૈ કિ ‘દ્રવ્ય ઉસે કહતે હૈં કિ જિસકે કાર્યકે લિયે બાહરકે સાધનકી રાહ દેખની નહીં પડતી’ ઉસકા ભાવ સમઝાઈયે... 2:00 Play वचनामृतमें आता है कि ‘द्रव्य उसे कहते हैं कि जिसके कार्यके लिये बाहरके साधनकी राह देखनी नहीं पड़ती’ उसका भाव समझाईये... 2:00 Play
માતાજી! પ્રજ્ઞાછૈની પડતે હી રાગ ઔર જ્ઞાન અલગ હો જાતે હૈ ઉસમેં પ્રજ્ઞાછૈની ક્યા હૈ? વહ કૈસે પડતી હૈ? ઔર કૈસે જ્ઞાન ઔર રાગ ભિન્ન-ભિન્ન દિખતા હૈ–હો જાતે હૈં....સમઝાઈયે 4:10 Play माताजी! प्रज्ञाछैनी पड़ते ही राग और ज्ञान अलग हो जाते है उसमें प्रज्ञाछैनी क्या है? वह कैसे पड़ती है? और कैसे ज्ञान और राग भिन्न-भिन्न दिखता है–हो जाते हैं....समझाईये 4:10 Play
માતાજી! જ્ઞાનીકી એક-એક બાતમેં અનંત આગમ સમાતે હૈ વહ કૈસે હૈં? 5:40 Play माताजी! ज्ञानीकी एक-एक बातमें अनंत आगम समाते है वह कैसे हैं? 5:40 Play
માતાજી! શ્રીમદ્જી કહતે હૈ કિ એક સત્પુરુષકો શોધકર ઉનકે ચરણોંમેં સર્વભાવ અર્પણ કર દેવે તો ફિર મોક્ષકી પ્રાપ્તિ ન હો તો હમસે લે જાવે યહ કૈસે હૈ? ભાવ કૈસે સમર્પિત કરના? માતાજી! બહુતસે બ્રહ્મચારી બહિન તથા મુમુક્ષુભાઈ પૂજ્ય ગુરુદેવશ્રી ઔર આપકે ચરણમેં સમર્પિત હોકર રહતે હૈ, ફિર ભી કાર્યમેં નહીં આતા હૈ, ઉસકા કારણ ક્યા હૈ? 8:25 Play माताजी! श्रीमद्जी कहते है कि एक सत्पुरुषको शोधकर उनके चरणोंमें सर्वभाव अर्पण कर देवे तो फ़िर मोक्षकी प्राप्ति न हो तो हमसे ले जावे यह कैसे है? भाव कैसे समर्पित करना? माताजी! बहुतसे ब्रह्मचारी बहिन तथा मुमुक्षुभाई पूज्य गुरुदेवश्री और आपके चरणमें समर्पित होकर रहते है, फ़िर भी कार्यमें नहीं आता है, उसका कारण क्या है? 8:25 Play
માતાજી! અનુભવસે પહલે, અનુભવકે કાલમેં ઔર અનુભવકે બાદ જીવાદિ સાત તત્ત્વોંકા ચિંતવન કૈસે ચલતા હૈં? 10:10 Play माताजी! अनुभवसे पहले, अनुभवके कालमें और अनुभवके बाद जीवादि सात तत्त्वोंका चिंतवन कैसे चलता हैं? 10:10 Play
માતાજી! જિતના કારણ દેવે ઉતના કાર્ય હોતા હૈ ઉસકા ક્યા મતલબ હૈ? 11:35 Play माताजी! जितना कारण देवे उतना कार्य होता है उसका क्या मतलब है? 11:35 Play
મતિજ્ઞાન કેવલજ્ઞાનકો બુલાતા હૈ વહ કૈસે બુલાતા હૈ? 12:30 Play मतिज्ञान केवलज्ञानको बुलाता है वह कैसे बुलाता है? 12:30 Play
સબ રાગાદિકા કિસપ્રકાર વમન કરેં? 13:35 Play सब रागादिका किसप्रकार वमन करें? 13:35 Play
ભેદજ્ઞાનકી શુરૂઆત કુટુમ્બસે–શરીરસે યા રાગસે કરના ચાહિયે? 14:10 Play भेदज्ञानकी शुरूआत कुटुम्बसे–शरीरसे या रागसे करना चाहिये? 14:10 Play
શાસ્ત્રમેં આતા હૈ આત્મામેં સુખ હૈ 18:05 Play शास्त्रमें आता है आत्मामें सुख है 18:05 Play
मुमुक्षुः- ... कोई अदभुत अलौकिक कार्य किया है। जिसके लिये बडे-बडेइन्द्र, चक्रवर्ती जैसे महान पुरुष भी नमन करते हैैं और जिसके बिना हम पामर प्राणी अनादि कालसे संसारमें परिभ्रमण करते हुए अनेक दुःखोंको भोग रहे हैं, उन दुःखोंका अभाव कैसे हो, ऐसा कृपा करके वह विधि बताईये कि जिससे हम आप जैसी दशाको प्राप्त कर सके।
समाधानः- एक आत्माका स्वभाव पहचानना। तत्त्वको पीछानना। चैतन्य तत्त्व कैसाहै? उसका स्वभाव, उसके द्रव्य-गुण-पर्याय कैसे हैं, उसको पहचानना। ये शरीरादि तो जड तत्त्व है। द्रव्य भिन्न है। उसका द्रव्य-गुण-पर्याय भिन्न है, अपना द्रव्य-गुण-पर्याय भिन्न है। दोनों तत्त्वको भिन्न पीछानना। और विकल्प जो विभाव होता है, वह भी अपना स्वभाव तो नहीं है। मूल शुद्ध स्वभाव शुद्धात्मा है उसको पीछानो। उसका भेदज्ञान करनेसे भीतरमें-से सुख प्रगट होता है।
आत्मद्रव्य चैतन्य तत्त्व है उस पर दृष्टि, उसका ज्ञान, उसकी लीनता, उसका अभ्यासकरनेसे यदि भेदज्ञान यथार्थ प्रगट होवे तो भीतरमें-से सुख और आनन्द प्रगट होता है। बाकी अनादि कालसे बाह्य क्रियामें और शुभभावमें धर्म मानता है तो पुण्यबन्ध होता है। उससे कहीं शुद्ध स्वभाव प्रगट नहीं होता है। पुण्य बान्धे तो देवलोक होता है, भवका अभाव नहीं होता है।
भवका अभाव तो शुद्धात्मा तत्त्व, निर्विकल्प तत्त्व उसको पहचानने-से भवका अभावहोता है। तो भेदज्ञान करके ज्ञाताधाराकी उग्रता करनी, उसमें लीनता करनेसे जो स्वानुभूति होती है, निर्विकल्प स्वानुभूति (होती है), उससे भवका अभाव होता है। उससे आनन्द होता है, सुख होता है और दुःखका अभाव होता है। इस प्रकार दुःखका अभाव अपने स्वभावको पहचाननेसे होता है।
मुमुक्षुः- माताजी! वचनामृतमें आता है कि द्रव्य उसे कहतें है जिसके कार्यकेलिये अन्य साधनोंकी राह नहीं देखना पडती। इस बातका भाव आपके मुखसे सुनना चाहते हैं।
समाधानः- द्रव्य स्वतंत्र है तो उसका कार्य करनेके लिये बाहरका साधन मिले