Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi). Track: 217.

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अमृत वाणी (भाग-५)

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ट्रेक-२१७ (audio) (View topics)

मुमुक्षुः- ... कोई अदभुत अलौकिक कार्य किया है। जिसके लिये बडे-बडे इन्द्र, चक्रवर्ती जैसे महान पुरुष भी नमन करते हैैं और जिसके बिना हम पामर प्राणी अनादि कालसे संसारमें परिभ्रमण करते हुए अनेक दुःखोंको भोग रहे हैं, उन दुःखोंका अभाव कैसे हो, ऐसा कृपा करके वह विधि बताईये कि जिससे हम आप जैसी दशाको प्राप्त कर सके।

समाधानः- एक आत्माका स्वभाव पहचानना। तत्त्वको पीछानना। चैतन्य तत्त्व कैसा है? उसका स्वभाव, उसके द्रव्य-गुण-पर्याय कैसे हैं, उसको पहचानना। ये शरीरादि तो जड तत्त्व है। द्रव्य भिन्न है। उसका द्रव्य-गुण-पर्याय भिन्न है, अपना द्रव्य-गुण-पर्याय भिन्न है। दोनों तत्त्वको भिन्न पीछानना। और विकल्प जो विभाव होता है, वह भी अपना स्वभाव तो नहीं है। मूल शुद्ध स्वभाव शुद्धात्मा है उसको पीछानो। उसका भेदज्ञान करनेसे भीतरमें-से सुख प्रगट होता है।

आत्मद्रव्य चैतन्य तत्त्व है उस पर दृष्टि, उसका ज्ञान, उसकी लीनता, उसका अभ्यास करनेसे यदि भेदज्ञान यथार्थ प्रगट होवे तो भीतरमें-से सुख और आनन्द प्रगट होता है। बाकी अनादि कालसे बाह्य क्रियामें और शुभभावमें धर्म मानता है तो पुण्यबन्ध होता है। उससे कहीं शुद्ध स्वभाव प्रगट नहीं होता है। पुण्य बान्धे तो देवलोक होता है, भवका अभाव नहीं होता है।

भवका अभाव तो शुद्धात्मा तत्त्व, निर्विकल्प तत्त्व उसको पहचानने-से भवका अभाव होता है। तो भेदज्ञान करके ज्ञाताधाराकी उग्रता करनी, उसमें लीनता करनेसे जो स्वानुभूति होती है, निर्विकल्प स्वानुभूति (होती है), उससे भवका अभाव होता है। उससे आनन्द होता है, सुख होता है और दुःखका अभाव होता है। इस प्रकार दुःखका अभाव अपने स्वभावको पहचाननेसे होता है।

मुमुक्षुः- माताजी! वचनामृतमें आता है कि द्रव्य उसे कहतें है जिसके कार्यके लिये अन्य साधनोंकी राह नहीं देखना पडती। इस बातका भाव आपके मुखसे सुनना चाहते हैं।

समाधानः- द्रव्य स्वतंत्र है तो उसका कार्य करनेके लिये बाहरका साधन मिले