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समाधानः- पर्वत पर मन्दिर, किसीने नहीं बनाया, अपनेआप, स्वयं (ही है)। जैसे भगवान हैं बराबर वैसे, कोई फर्क नहीं।
मुमुक्षुः- उसकी यात्रा हो सकती है?
समाधानः- वह तो देव कर सकते हैं। नंदिश्वरकी यात्रा तो। मेरु पर्वतकी यात्रा विद्याधर हो वह कर सकते हैं, कोई देव ले जाये तो कर सकता है। विद्याधर हो तो जा सकते हैं। कोई शक्तिशाली मुनि हों तो जा सकते हैं। बाकी नंदिश्वरमें तो देव ही जाते हैं। मनुष्य नहीं जा सकते। नंदिश्वरमें मनुष्य नहीं होते, देव ही होते हैं।
मुमुक्षुः- ऐसा कहते हैं, यहाँ नंदिश्वरमें आते हैं न, देव हो वही आ सकते हैं। ऐसे।
समाधानः- .. सब होता है।
मुमुक्षुः- .. हमें कहते थे कि आपका भी कोई प्रताप है। हम आज गुरुदेवकी आप पर अपार कृपा थी और वह कृपा आज हमारे पर बरस रही है, आपके द्वारा। ऐसा हम मानें तो कुछ गलत है?
समाधानः- सब गुरुदेवका प्रताप है।
मुमुक्षुः- भगवान.. भगवान। कुन्दकुन्दाचार्यने भी कभी अपना नाम नहीं आने दिया। .. श्रुतंधर भद्रबाहु .. भगवान। वैसे आप भी कहीं...
समाधानः- सब मूल मार्ग तो गुरुदेवने प्रकाशित किया है। सब गुरुदेवका ही है।
मुमुक्षुः- बात बिलकूल सत्य है, परन्तु आज भी हमें गुरुदेवका स्मरण करवाने वाले भी आप ही हो न।
समाधानः- सब गुरुदेव ही है, अपन तो उनके दास हैं। आप लोग कुछ भी कहो।
मुमुक्षुः- बहिनश्री! हमें ऐसा लगता है, हम गुरुदेवको देखते थे, जब वे आपको आते देखते थे और कभी .. कोई अहोभावसे देखते थे। अहोभावसे। मानो भगवानका एक नमूना आता हो! ऐसा उनको भी लगता था, ऐसा हम बराबर अनुभव करते थे। इसलिये गुरुदेवके हृदयमें आपका स्थान कोई अनेरा था, अनेरा था। आज तक उनके हृदयमें यदि किसीने स्थान जमाया हो तो एक मात्र बहिनश्री है, और कोई नहीं। अत्यंत करुणा थी। बहिनश्रीका नाम आये तो उनका हृदय उल्लसित हो जाता था। पुरुषार्थ.. पुरुषार्थ..
मुमुक्षुः- श्रीमदका अन्दर पढा था, अगासके कोई पुस्तकमें, समीप समय अज्ञात, बस, यह रखना, समीप समय अज्ञात। ...