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समाधानः- बरसों पहले यहाँ कुछ नहीं था। सब मन्दिर (बने)। जब स्वाध्याय मन्दिर हुआ तब वहाँ कुछ नहीं था। गुरुदेवके प्रतापसे सब वहाँ हो गया।
मुमुक्षुः- गुरुदेव कहते थे कि, यहाँ तो भैंस घूमती थी।
समाधानः- हीराभाईकी दुकानसे लेकर यहाँ तक ऐसा लगे कि जंगलमें है। जंगलमें हैं ऐसा लगे।
मुमुक्षुः- वैराग्य एवं उदासीनता..
समाधानः- एक ही है। लगभग एक ही है। वैराग्य अर्थात परसे भिन्न होकर अपनेमें (आये), उदासीनता भी वही है। उदास हो जाये, उसमें भी वही है।
मुमुक्षुः- उपशमपना?
समाधानः- उपशममें कषायकी उपशमता, उसमें थोडा फर्क है। जुडना नहीं, कषायके वेगमें बहना नहीं। शांत परिणाम रखे, कहीं बहे नहीं, वह उपशम। तीव्र कषाय, जो मुमुक्षुकी भूमिकाको शोभते नहीं ऐसे कषायोंमें बह नहीं जाता, वह उपशमभाव। .. उसकी क्या बात!
... (जिन) प्रतिमा जिन सारखी कहनेमें आती है। उसमें भावना वालेको एक ही दिखाई देता है, प्रतिमा और भगवानमें कुछ फर्क नहीं दिखता। भावसे देखे उसे भगवानकी प्रतिमामें फर्क नहीं दिखता। जिन प्रतिमा जिन सारखी, ऐसा शास्त्रमें आता है। अल्प भव स्थिति जाकी, सो ही जिन प्रतिमा परमानै, जिन सारखी, ऐसा आता है।
जगतमें रत्न भी भगवानरूप परिणमित हो रहे हैं। भगवान जगतमें सर्वोत्कृष्ट हैं तो कुदरतमें शाश्वत प्रतिमाएँ हैं। शाश्वत मन्दिर एवं शाश्वत प्रतिमाएँ। मेरुमें, नंदिश्वरमें, ऊर्ध्व, मध्य, अधोलोकमें चारों ओर हैं।
मुमुक्षुः- रत्न ऐसी प्रतिमारूप परिणमते हैं?
समाधानः- प्रतिमारूप रत्न परिणमते हैं। साधारण पत्थर नहीं, बल्कि उच्च रत्नोंके परमाणुरूप ऐसे स्कंध प्रतिमारूप परिणमित हो गये हैं। सब शास्त्रमें आता है।
मुमुक्षुः- कृत्रिम नहीं, रत्न ही ऐसे परिणमित हुए हैं।
समाधानः- ये पुदगल रत्नरूप परिणमित होकर सब प्रतिमारूप होकर, उसके आकार प्रतिमा मानों साक्षात भगवान ही बैठे हैं, एकमात्र वाणी नहीं, उतना। समवसरणमें बैठे हों ऐसे हूबहू। पाँचसौ-पाँचसौ धनुषकी (प्रतिमाएँ)। किसीने नहीं बनाया, अपने आप। कुदरत मानो कहती है कि जगतमें भगवान सर्वोत्कृष्ट है।
मुमुक्षुः- नंदिश्वर द्विप देखा तब आश्चर्य होता था। शाश्वत भगवान किसप्रकार होंगे? आज स्पष्ट हुआ, आज स्पष्ट हुआ।