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समाधानः- अरूप है। लेकिन यह रूपी वर्ण, गन्ध इत्यादि सब नहीं है। अरूपी अर्थात स्वयं वस्तु है न? अपने स्वभावको स्वयं देख सकता है। अरूपी अर्थात स्वयं अपने ज्ञान-से स्वयंको पहचान सकता है। उसका वेदन कर सकता है।
.. केवलज्ञानी भगवान भी, सम्यग्दृष्टि भी उसकी स्वानुभूतिमें उसे देख सकश्रते हैं, उसका वेदन कर सकते हैं। स्वानुभूतिके समय उसका वेदन कर सकते हैं, उसे प्रत्यक्ष देख सकते हैं। अनुभूतिमें वह प्रत्यक्ष ही है, ऐसा उसे दर्शन होता है।
मुमुक्षुः- ..
समाधानः- कर्म छूट जाते हैं। पहले आंशिक स्वानुभूति होती है। इसलिये अमुक प्रकारसे कमाका नाश होता है। फिर जैसे आगे बढे वैसे अधिक कमाका नाश होता है। केवलज्ञान होता है तब पूर्ण कमाका नाश होता है। सम्यग्दर्शन हो, स्वानुभूति हो तब थोडे कमाका। स्वानुभूति जब होती है, इसलिये जो अनन्त भव उसके होते थे, उस अनन्त भवका अभाव होता है, ऐसे कर्मका नाश हो जाता है। फिर थोडा ही बाकी रहता है। अनन्त भवका नाश हो जाय, ऐसे कर्मका नाश हो जाता है। लेकिन स्वानुभूति हो तब।
उसकी दृष्टि कर्म पर नहीं है। निज स्वभाव पर ही दृष्टि है। स्वभावका वेदन हो, उसी पर दृष्टि है-स्वभाव पर। कर्म तो स्वयं छूट जाते हैं। अनन्त भवका अभाव हो जाय। ऐसे कर्मका नाश हो जाता है। फिर तो अल्प-थोडे रहते हैं।
... विकल्पको तो स्वयं जानता है न? जो विकल्प हो रहे हैं, राग-द्वेष, संकल्प- विकल्प, पूरे दिन भरके विकल्प, सब धमालके विकल्प, व्यापार-व्यवसायके जो-जो विकल्प आते हो, उस विकल्पको तो स्वयं जानता है न? कि ये विकल्प मुझे हुए। कितने? सुबहसे शाम तक जो विचार आये, उस विचारको तो जानता है। वह जाननेवाला कौन है? सब विचार तो चले जाते हैं। बचपनसे बडा हुआ, उसमें जो विचार, विकल्प आये वह विकल्प तो चले गये। परन्तु उसका जाननेवाला विद्यमान है। उसे याद करे तो उसे सब याद आता है। वह जाननेवाला है। जाननेवाला है वह जान रहा है। वह जाननेवाला अन्दर विद्यमान है।
चर्म चक्षुसे दिखे ऐसा नहीं, परन्तु अन्दर जाननेवाला है वह सब याद करता है। उसका अस्तित्व है-जाननेवालेका। उसकी मौजूदगी है, उसका अस्तित्व है? वह जाननेवाा कौन है? विकल्प तो सब चले गये, परन्तु उसे याद करे तो, मुझे ऐसे-ऐसे विचार आये थे, जाननेवाला अन्दर है। यह शरीर कुछ जानता नहीं है। वह तो जानता नहीं, विकल्प तो सब आकर चले गये, अन्दर जाननेवाला एक तत्त्व विद्यमान है। वह जाननेवालेका अस्तित्व है अन्दर, वह जान रहा है।