२१८ और विशेषज्ञानका तिरोभाव अर्थात ज्ञेयाकार ज्ञान, ज्ञेयाकार ज्ञानको वहाँ विशेष ज्ञानका गिना है। और ज्ञान, ज्ञान, ज्ञान सामान्य ऐसे सामान्य ज्ञानका आविर्भाव कहा है। और उसमें विशेष गुरुदेव ऐसा कहते थे कि यहाँ द्रव्य ... नहीं लेना।
समाधानः- .. अनुभूति होती है। विशेषमें जो सब्जीमें लवण मात्र सामान्य ख्यालमें लेता है, वैसे ज्ञान..ज्ञान.. ज्ञान.. सामान्य लक्ष्यमें लो तो वह सामान्य ज्ञायक-ज्ञानकी अनुभूति है। विशेष जो ज्ञेयाकार ज्ञान है उसमें सब मिश्रित स्वाद आता है। मात्र सामान्य पर दृष्टि करे, सामान्य ज्ञान पर-ज्ञायक पर दृष्टि करे तो उसे सामान्यकी अनुभूति अर्थात अनुभूति तो विशेषकी होती है, पर्यायकी अनुभूति होती है, वह पर्यायकी बात है, उस अपेक्षासे अनुभूति पर्यायकी होती है।
मुमुक्षुः- पर्यायमें सामान्य-सामान्य लेना ऐसा नहीं? पर्यायमें सामान्य जानना.. जानना.. जानना..
समाधानः- पर्यायका विषय सामान्य है कि यह ज्ञान.. ज्ञान.. ज्ञान.. उसका विषय सामान्य है, परन्तु अनुभूति पर्यायकी होती है।
मुुमुक्षुः- ज्ञानमात्र कहने पर आत्माका अनुभव करने पर सम्यग्ज्ञान पर्यायमें प्रगट होता है।
समाधानः- सम्यग्ज्ञान पर्यायमें प्रगट होता है। ज्ञान सो मैं। उसका विशेष जो मिश्रित स्वाद आये, रागमिश्रित वह मैं नहीं, अकेला जो ज्ञान.. ज्ञान.. ज्ञान सो मैं हूँ। उतना दृष्टिमें आया फिर उस रूप अनुभूति होती है। अर्थात वह पर्यायकी अनुभूति है। दृष्टि, ज्ञानमें दृष्टिमें उसने अकेला सामान्य लिया है। अनुभूति पर्यायकी होती है।
मुमुक्षुः- सामान्य लक्ष्यमें लेने पर अनुभूति..
समाधानः- अनुभूति पर्यायकी होती है। निर्विकल्प हो गया, विकल्प छूट गये, न्यारा हो गया। दृष्टि सामान्य पर रखकर उसमें लीनता हो गयी। इसलिये स्वानुभूति हुयी। वह स्वानुभूति पर्यायमें होती है। अनुभूति पर्यायकी (होती है), विषय सामान्य है। सामान्यका आविर्भाव हुआ, विशेषका तिरोभाव अर्थात जो मिश्रित स्वाद था, उसका तिरोभाव हुआ। और सामान्यका आविर्भाव अर्थात उसकी दृष्टि सामान्य पर गयी इसलिये उसका आविर्भाव (हुआ)। आविर्भाव यानी प्रगटपना हुआ वह प्रगट तो पर्याय हुयी। अनुभूति पर्यायकी है।
मुमुक्षुः- विशेषज्ञानका तिरोभाव हुआ अर्थात ये ज्ञात होता है, ज्ञात होता है उसका तिरोभाव हुआ और जानना.. जानना.. जानना..
समाधानः- हाँ, उसका आविर्भाव हुआ।
मुमुक्षुः- .. विचारनेमें आये तो विशेषके आविर्भावसे अनुभवमें आ रहा ज्ञान