Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-५)

२२६

समाधानः- पकडमें तो भीतरमें उसकी रुचि, महिमा करे तो पकडमें आवे। अपना स्वभाव है, पकडमें नहीं आवे ऐसा तो नहीं है। पकडमें तो आ (सकता है)। सूक्ष्म उपयोग करे, उसकी महिमा करे, रुचि करे तो पकडमें आवे। वह ज्ञान द्वारा पकडमें आता है। यदि यथार्थ ज्ञान करे तो पकडमें आवे। उसको ग्रहण करके अनन्त जीव मोक्षमें गये हैैं और जाते हैं, जानेवाले हैं। अपने पकडमें आता है। जो उसकी रुचि करे उसको पकडमें आता है, उसकी महिमा करे तो पकडमें आता है।

भूतकालमें अनन्त जीव (मोक्षमें) गये, सब आत्माकी आराधना करके, ज्ञायकका ध्यान करके, ज्ञायककी प्रतीत करके और उपयोग अपनेमें स्थिर करके आनन्दका अनुभव करते-करते वीतराग दशा प्रगट होकर मोक्ष गये। अनन्त कालमें वह मार्ग तो एक ही है। वर्तमानमें महाविदेह क्षेत्रमें भी यही मार्ग है। चैतन्यमें उपयोग स्थिर करे, उसकी दृष्टि उसमें स्थापित करे तो मुक्तिका अंश प्रगट होता है। उसमें विशेष आराधना करे तो वीतराग दशा होती है। भविष्यमें इसी मार्गसे जायेंगे।

बाह्य क्रिया अनन्त कालमें करी, शुभ राग किया, पुण्य बन्ध हुआ, देवलोक हुआ लेकिन मुक्तिका मार्ग नहीं हुआ। मुनिपना लिया, सब लिया, बाह्य क्रिया करी, परन्तु अंतर स्वभाव ज्ञानका परिणमन प्रगट नहीं किया, इसलिये स्वानुभूति प्रगट नहीं हुयी। अंतर चैतन्यको पहचानकर स्वभावका परिणमन, स्वभावकी क्रिया प्रगट करे, स्वभावमें लीन होवे तो प्रगट होता है। स्वानुभूति प्रगट होती है। उससे मुक्तिका मार्ग मिलता है। स्वानुभूति बढते-बढते मुनिदशा आती है और उसीमें वीतराग दशा होती है, उसीमें केवलज्ञान होता है। मार्ग एक ही है।

मुमुक्षुः- शुद्धात्माके साधक धर्मात्माकी एक ही समयमें आस्रवरूप, संवररूप और निर्जरारूप भाव प्रवर्तते हैं। तो उसमें आस्रवरूप भावोंका षटकारक परिणमन किसके आधारसे होता है? और संवररूप भावोंका एवं निर्जरारूप भावोंका षटकारक परिणमन किसके आधारसे होता है? यह कृपा करके हमें समझाईये।

समाधानः- आस्रव और संवर। संवर तो शुद्धात्माकी ओर दृष्टि स्थापे तो शुद्धात्माकी पर्याय शुद्धात्मामें-से होती है। शुद्धात्माकी ओर पुरुषार्थ करे तो शुद्धात्माका ज्ञान करे, उसमें दृष्टि करे, उसमें लीनता करे। शुद्धात्माकी पर्याय शुद्धात्मामें-से प्रगट होती है। आस्रवकी पर्याय विभावभाव है। अपने पुरुषार्थकी मन्दतासे (होता है)। जितने अंशमें संवर हुआ, उतना संवर है। जितनी अशुद्धता है, उतने अंशमें अशुद्धता आस्रव है। और जितने अंशमें वीतराग दशा हुयी, उतने अंशमें संवर है।

संवरकी पर्याय शुद्धात्माके आश्रयसे होती है। और अभी अल्प है, पूर्ण नहीं है, इसलिये आस्रव भी अल्प है, संवर भी है और निर्जरा भी है। सब होता है। सब