२३० होता है। उसके पहले मैं ज्ञायक हूँ, ज्ञायक हूँ, ऐसा बारंबार उसका रटन करते रहना। वह टहेल मारनी है। विकल्प जो आता है, वह विकल्प मेरा स्वरूप नहीं है। विकल्पसे भी मैं भिन्न हूँ। शुभ मन्द या तीव्र जो-जो विभाव आये उन सबसे भिन्न मैं चैतन्य हूँ। मैं चैतन्य हूँ, चैतन्य हूँ, बारंबार उसकी महिमा, उसकी लगन। बारंबार अंतरमें वह रटन रहना चाहिये कि मैं ज्ञायक हूँ। मैं विकल्प रहित निर्विकल्प तत्त्व हूँ और विकल्प छूट जाट तो भी मेरेमें ही सब भरा है। बाहरमें नहीं है। विकल्प छूट जाय इसलिये स्वयं शून्य नहीं हो जाता है। परन्तु अंतरमें जो भरा है वह प्रगट होता है। इसलिये मेरेमें एक ज्ञानमात्र-ज्ञायकमात्र आत्मामें सब सर्वस्व है। ऐसे बारंबार उसकी भावना, उसका रटन, उसका विचार, उसका वांचन आदि करने जैसा है। ज्ञायकके आँगनमें टहेल लगाने जैसी है, बारंबार।
मुमुक्षुः- वांचन, विचार करने पर पुनः भेदके रास्ते पर चढ जाता है। अनादिकी आदत है उस पर जानेकी।
समाधानः- भेदके रास्ते पर चढ जाय तो भी बारंबार अपनी ओर लक्ष्य करते रहना। क्योंकि कहीं न कहीं रुकता तो है। जबतक अंतरमें लीन नहीं हुआ है, अंतरमें दृष्टि नहीं गयी है, तबतक उसे कहीं न कहीं घुमता रहता है। इसलिये कहीं खडा तो रहता है। परन्तु श्रद्धा और रुचि उस ओर रखनी कि ज्ञायक, ज्ञायकमें सब है। इन सबमें रुकने जैसा नहीं है। वह तो बीचमें आये बिना नहीं रहता। परन्तु श्रद्धा तो ज्ञायककी रखनी कि निर्विकल्प तत्त्व शुद्धात्मा ज्ञायक मैं हूँ। ये सब तो उसमें रह नहीं पाता हूँ, इसलिये वह सब आये बिना नहीं रहता।
मुमुक्षुः- अंतरमें वह प्रतीति नहीं आती है। मैं परिपूर्ण हूँ, मेरेमें सब है। यह विश्वास, ना जाने क्यों विश्वास नहीं आता है। दूसरी सब वस्तुओंका विश्वास (आता है), सोनेका, झवाहरातका, फलानेका सबका विश्वास आता है, परन्तु इसी क्षणमें मेरेमें सब भरा है, (यह विश्वास नहीं आता है)।
समाधानः- दूसरा सब दिखता है, यह दिखाई नहीं देता है। (इसलिये) उसे अन्दरमें विश्वास ऊड जाता है। परन्तु उसमें सब है। स्वयं विचार करके, गुरुदेव कहते हैं, देव-गुरु-शास्त्र कहते हैं, परन्तु स्वयं विचार करके नक्की करे तो उसीमें सब भरा है।
गुरुदेव कहते थे न? छोटीपीपर घिसते-घिसते उसमें-से चरपराई निकलती है। वैसे ज्ञायक हूँ, ज्ञायक हूँ करे, उसीमें सब भरा है, उसमें-से स्वभाव प्रगट होता है। छाछको बारंबार बिलोता रहे तो उसमें-से मक्खन भिन्न हो जाता है। ऐसे बारंबार भेदज्ञान (करे)। बारंबार मैं भिन्न हूँ, भिन्न हूँ, ऐसा बारंबार करे तो, जैसे मक्खन भिन्न हो जाता है,