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... पीलापन है, चीकनापन है, सुवर्ण ऐसा है, अथवा हीरा ऐसा है, ऐसा उसका प्रकाश है, श्वेत है, वह सब गुण है। परन्तु पूर्ण हीरा सो मैं, पूर्ण सुवर्ण सो मैं। ऐसे ज्ञानमें एक ज्ञानगुण जाने वह मैं, ऐसा नहीं, जाननेवालेका पूर्ण अस्तित्व है वह मैं हूँ।
मुमुक्षुः- बहुत सुन्दर स्पष्टीकरण आया। बहुत समयसे ऐसा लगता था कि गुरुदेव आत्माका स्वभाव ज्ञान तो कहते हैं, परन्तु उसे कोई कार्यसिद्धि तो होती नहीं, परन्तु यह एक बहुत बडी भूल होती है।
समाधानः- मात्र ज्ञेयको जानने वह ज्ञान, इस तरह ज्ञान नहीं, परन्तु पूरा द्रव्य ज्ञायक। वह ज्ञान किसके आधारसे रहा है? उस ज्ञानको आधार किसका है? पूरा द्रव्य है। ज्ञान एक पूरा अस्तित्व है, ज्ञायक अनन्त गुणसे गुँथा हुआ ज्ञायकका पूरा अस्तित्व है वह मैं हूँ।
मुमुक्षुः- मात्र एक गुण मैं नहीं, परन्तु अनन्त गुणका पिण्ड ऐसा जो द्रव्य, ऐसा मेरा अस्तित्व है, वह मैं हूँ।
समाधानः- ऐसा मेरा अस्तित्व है वह मैं हूँ। पीला उतना सोना नहीं, परन्तु सोनेमें दूसरे बहुत गुण हैं, ऐसा सोनेका पूरा अस्तित्व है वह सोना है। ऐसे ज्ञायक है वह अनन्त गुणसे भरा हुआ एक द्रव्य है, वह मैं हूँ। ज्ञान कहकर गुरुदेवको, आचार्यदेवको ज्ञान कहकर ज्ञायक कहना है। ज्ञानगुण असाधारण है इसलिये ज्ञान द्वारा पहचान करवाते हैैं कि ज्ञान सो मैं। ज्ञान है वह तू है, ऐसे पहचान करवाते हैं। लक्षणसे लक्ष्यकी पहचान करवाते हैं। आचार्यदेव और गुरुदेवको यही कहना है कि ज्ञान है वह तू है अर्थात ज्ञायक है वह तू है, ऐसा कहना चाहते हैं।
मुमुक्षुः- कहनेका भावार्थ यह है कि ज्ञायक सो मैं।
समाधानः- ज्ञायक है वह तू है, ऐसा कहना चाहते हैं, ज्ञान कहकर। क्योंकि ज्ञान सबको ज्ञात हो सकता है, ज्ञान असधारण गुण है इसलिये लक्षण द्वारा लक्ष्यकी पहचान करवाते हैं। गुरुदेव ऐसा कहते थे और शास्त्रोंमें भी (ऐसा ही कहना है)। गुरुदेवने शास्त्रोंके रहस्य खोले हैं। ज्ञान कहकर ज्ञायक कहना चाहते थे।
मुमुक्षुः- बहुत सुन्दर बात आयी। ज्ञान कहकर गुरुदेव भी ज्ञायक ही कहते थे।
समाधानः- हाँ, गुरुदेव, ज्ञान कहकर ज्ञायक कहते थे। आता है, "इसमें सदा रतिवंत बन'। जितना ज्ञानमात्र है उतना तू है। उसमें सदा रुचि कर, उसमें संतुष्ट हो, उसमें तृप्त हो। जितना ज्ञानमात्र आत्मा उतना तू। जितना परमार्थ ज्ञानस्वरूप आत्मा है वह तू है। ज्ञानमात्र कहकर ज्ञायक है वह तू है, ऐसा कहना चाहते हैं।
मुमुक्षुः- उतना सत्यार्थ..