१५० पडे ऐसा नहीं है। स्वयंको प्रयत्न करना बाकी है, इतना गुरुदेवने स्वानुभूतिका मार्ग दर्शाया है। पहलेसे समझा दिया है। कोई शंका ही नहीं रहे। कोई दूसरे दर्शन क्या कहते हैं, उसकी भी शंका नहीं रहे, ऐसा उनकी वाणीमें सब स्पष्ट आता था।
मुमुक्षुः- भले सम्यग्दर्शन प्राप्त नहीं हो, लेकिन उसके जो संस्कार है, वह कितने प्रमाणमें अपने साथ आते हैं?
समाधानः- गहरे संस्कार हो तो साथ आते हैं। ऊपर-ऊपरसे हो, जैसे बाकी सब रूढिगत रूपसे धर्म करते हैं कि धर्म करना चाहिये, ऐसे रूढिगतरूपसे हो तो साथ नहीं आते। परन्तु गहरे संस्कार हो और अन्दर सच्ची लगन लगी हो कि मुझे आत्मा प्राप्त करना ही है, मुझे आत्मा कैसे प्राप्त हो, ये विभाव मुझे नहीं चाहिये, ये सब आकूलतारूप है, मुझे आत्मा कैसे मिले, ऐसी अन्दरकी लगन लगी हो तो वह साथ आते हैं।
मुमुुक्षुः- ऐसी लगन लगी हो, परन्तु उतना भेदज्ञान नहीं किया हो तो? समाधानः- भले भेदज्ञान नहीं किया हो, लेकिन लगन लगी हो तो वह लगनी, स्वयंकी लगनी अंतरकी हो तो वह साथ आते हैं, भेदज्ञान भले नहीं हो।
मुमुक्षुः- .. शुरूआत करने के लिये भेदज्ञान विशेष कैसे करना? समाधानः- पहले तो आत्माको पहचानना कि आत्मा कौन है? मैं एक आत्मा हूँ, ये जानने वाला, जानता है वह मैं हूँ, ये जानता नहीं है वह जड है। अन्दर जो जानने वाला है, वह मैं हूँ। जानने वाला ज्ञान, आनन्दसे भरा आत्मा है। उस आत्माका विश्वास करना कि यह आत्मा जानने वाला है वही मैं हूँ। अन्दर जो आकूलता होती है, संकल्प-विकल्प, अनेक प्रकारके विकल्प होते हैं, वह विकल्प भी मेरा स्वभाव नहीं है, मैं उससे भिन्न हूँ। ऐसी अन्दर दृढता करे, बारंबार उसका अभ्यास करे।