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वाला है, वह मैं हूँ। मात्र दूसरेको जाने इसलिये जानने वाला है ऐसे नहीं, परन्तु जानने वाला स्वयं जानने वाला ही है।
जैसे यह एक जड वस्तु स्वयं है। वैसे आत्मा जानने वाला भी एक स्वयंसिद्ध वस्तु है। जानने वाला मैं हूँ। इसप्रकार जानने वालेको नक्की करके दृढ निर्णय करना कि यह जानने वाला ही मैं हूँ, उससे ये सब भिन्न है। ये जड शरीर भिन्न, आत्मा भिन्न, विकल्प आकर चले जाये वह मेरा स्वभाव नहीं है। वह सब भिन्न, मैं भिन्न। स्वयंको स्वयंसे नक्की करके भेदज्ञान करनेका प्रयत्न करना। पहले उसकी प्रतीत दृढ करे कि ये जानने वाला है वही मैं हूँ, अन्य नहीं। ऐसा नक्की करके जानने वाला शाश्वत है, उसमें गुण है, जानने वाला ज्ञानसे भरा, आनन्दसे भरा, अनन्त गुणसे भरा आत्मा महिमावंत है। उसकी महिमा लाकर, उसकी प्रतीत लाकर दृढ निर्णय करे और उसका प्रयास करनेका प्रयत्न करे।
एकत्वबुद्धि अनादिसे हो रही है, उसे बारंबार प्रतिक्षण भिन्न करनेका प्रयत्न करे। विचार करके, निर्णय करके, जब तक नहीं होता तब तक शास्त्रका अभ्यास करे, स्वाध्याय करे, विचार करे, वांचन करे, बारंबार उसकी लगनी लगाये तो होता है। भेदज्ञान करनेका प्रयास करे, मैं भिन्न हूँ। उससे (-परसे) भिन्न पडे, संकल्प-विकल्प आये उसमें एकत्व नहीं हो और रस छूट जाये। जिसे आत्माकी ओर रस लगा, उसे मन्द पड जाता है, सब छूट नहीं जाता, मन्द पड जाता है। ये जानने वाला ज्ञायक है वही मैं हूँ। भेदज्ञान करना वही मार्ग है। और उसका प्रयास करते-करते यदि अंतरसे सच्चा प्रयत्न हो तो उसे स्वानुभूति भी उसी भेदज्ञानके मार्गसे होती है। दूसरा कोई मार्ग नहीं है।
अभी कितने ही समझे बिना ध्यान करने बैठ जाते हैं। परन्तु समझ बिनाका ध्यान तरंगरूप हो जाता है। पहले मार्ग जानना चाहिये, यथार्थ ज्ञान करना चाहिये कि जानने वाला है वही मैं हूँ। इसप्रकार जानने वालेकी प्रतीति करके उसमें लीनता करे, एकाग्र हो तो सच्चा ध्यान होता है। नहीं तो सच्चा ध्यान नहीं होता। ध्यानमें बैठे तो विकल्प मन्द पडे, तो मानो कुछ हो गया, ऐसा मान लेता है। यथार्थ भेदज्ञान करे, आत्माको पहचाने और उसमें ध्यान हो तो यथार्थ होता है। पहले भेदज्ञान करनेका प्रयास करे। द्रव्यको पहचाननेका (प्रयास करे), द्रव्य पर दृष्टि स्थिर करे कि, यह द्रव्य है वही मैं हूँ, बाकी सब मुझसे भिन्न है। अपने द्रव्यको पहचाने, गुण और पर्याय, सबका स्वरूप पहचाने। यह चैतन्यद्रव्य है वही मैं हूँ, ऐसी दृढता करे।
पहले मार्गको नक्की करना। स्वभावको बराबर विचारे। अपने हाथकी बात है, जिज्ञासु नक्की करता है। ... गुरुदेवने वाणी बरसायी, सब लोग कहाँ थे, ये वीतरागी मार्ग यथार्थ है, कितने ही रीतसे स्पष्ट कर-करके समझाया है। कहीं किसीको पूछने जाना