Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-२)

१४८ है, कोई किसीसे मुक्ति कहे, कोई किससे मुक्ति कहे, उसमें तो बहुत फेरफार है। जैनदर्शन तो यथार्थ है। आत्माके द्रव्य-गुण-पर्याय सब यथार्थ बात आती है। अपेक्षासे आत्मा नित्य शाश्वत है, उसकी पर्यायमें अनित्यता है, बाकी वास्तविक वस्तु अनित्य नहीं है। बहुत प्रकारकी (बात) अन्दर (है)। मुक्तिका मार्ग आत्माको पहचाने तो होता है। भेदज्ञान करे। बहुत फेरफार है। स्वानुभूति कैसे हो? जैनमें यथार्थ मार्ग है, ऐसा मार्ग कहीं नहीं है। सबमें फेरफार है।

मुमुक्षुः- जैनमें हम जन्मे इसलिये मान लेना कि जैन ही सत्य है।

समाधानः- जन्म हुआ इसलिये मान नहीं लेना, लेकिन विचार करके मानना कि यथार्थ जैनदर्शन सत्य ही है। विचार करे, यथार्थ जिज्ञासा हो तो आत्माका करना ही है तो यथार्थ मार्ग क्या है, उसे स्वयं पहचान सकता है। यथार्थ सत्पुरुषको पहचान ले, आत्माका स्वरूप कैसा, कौन-सा मार्ग सच्चा है, वह समझ सकता है। और अपनी उतनी शक्ति नहीं हो तो स्वयं जो महापुरुष हो गये, उनकी बातका स्वयं स्वीकार करके, स्वयं विचार करके निर्णय करे। ये वीतरागी मार्ग है। अन्यमें तो कोई-कोई फेरफार है। गुरुका, शास्त्रमें सब अलग आता है।

स्वतंत्रता जो जैनदर्शनमें आती है, ऐसी दूसरेमें आती नहीं। कोई कर देता है, किसीसे होता है, किसीको कोई देता है, ऐसी अनेक जातकी विपरीतता है। ऐसा नहीं हो सकता। आत्मा स्वतंत्र है।

मुमुक्षुः- सभी दर्शन वाले कहते हैं, हमारा भी सत्य है।

समाधानः- प्रत्येक दर्शन वाले कहे, लेकिन विचार करके स्वयंको नक्की करना चाहिये। मुक्ति होनेके बाद वापस आता है, ऐसा अनेक प्रकारका आता है। सब आत्मा एक है। सब एक हो तो प्रत्येकके सुख-दुःखका वेदन भिन्न-भिन्न होता है, प्रत्येककी स्वतंत्रता (है)। किसीका वेदन अन्य किसीको नहीं होता। विचार करके सब नक्की हो सके ऐसा है। पुरुषार्थ किसके लिये करना? स्वयंके लिये। स्वयं स्वतंत्र है।

मुमुक्षुः- पुरुषार्थ कैसे करना? और भेदज्ञानकी रीत क्या है?

समाधानः- पुरुषार्थ आत्माको पहचाननेका (करन)। मैं एक जानने वाला हूँ, विचार करके नक्की करे कि ये जानने वाला जो अन्दर है वही मैं हूँ। ये जड कुछ नहीं जानता। अन्दर संकल्प-विकल्प राग-द्वेष होते हैं, वह भी स्वयंको नहीं जानते। उसे जानने वाला अन्दर कोई अलग ही है। पहले बचपनमें जो-जो भाव आये वह भाव तो चले गये, विकल्प (चले गये) और जानने वाला ऐसा ही खडा है। वह जानने वाला सब अन्दर याद करने वाला भिन्न है और ये संकल्प-विकल्प सब भिन्न हैं। शरीर भी भिन्न है, इसप्रकार विचार करके नक्की कर सकता है। अन्दर जो जानने