२७६ करना अच्छा लगे। लौकिकसे अलौकिक मुद्रा हो गयी है। अन्दर आत्मामें समा गये हैं। नासाग्र ... कुछ हिलना-चलना नहीं दिखता। केवलज्ञानीकी मुद्रा देखनी हो, उनके दर्शन करना हो ... अंतरमें ऊतरे हुए, ... अलौकिक, जगत-से अलग ही मूर्ति लगे। मनुष्य जैसी नहीं, वह तो अलौकिक मूर्ति! अंतरमें समा गये हैैं। सभा भरी है तो भी भगवान अंतरमें, किसीके सामने देखते नहीं। किसीका सुनते भी नहीं। भगवान बोलो। कुछ जवाब भी नहीं देते हैं और सुनते भी नहीं है। कौन कहे? भगवान बोलो, ऐसा कहे तो भी भगवान तो अंतरमें विराजते हैं। उनके दर्शन करनेमें कोई अपूर्वता लगे। बोलते नहीं है। वे कहाँ ध्यान देते हैं। ...
कोई पूजा करे, कोई ऐसा सब करते हो, परन्तु भगवानकी ध्वनि नहीं छूटती है। श्रावक आये। वाणी छूटती नहीं है। छत्र, चँवर, दुन्दुभी सब है, लेकिन दिव्यध्वनि... अष्ट प्रातिहार्यमें दिव्यध्वनि नहीं छूटती है। ... सभामें बैठे हो ... ठीक न हो और बाहर आकर बैठे हो, गुरुदेव बोलेंगे तो? बोलेंगे इसलिये किसीको घर जानेका मन नहीं होता था।
जिनके जन्म समय इन्द्र हजार नेत्र करके भगवानको देखता है। समवसरणके अन्दर आत्मामें समा गये हैं और भगवानकी मुद्रा अलग हो गयी है। ...
१५ः५० मिनट पर्यंत। (नोंधः- अवाज स्पष्ट नहीं है)।