चैतन्य अखण्ड शाश्वत है, उसमें अशुद्धता नहीं हुयी है। शुद्धात्माको ग्रहण करना और विभावसे विभक्त करना। वह मुक्तिका मार्ग है। इसको मैं जानता हूँ, नहीं जानता हूँ, वह तो बीचमें जाननेकी बात हुयी, पहले विभावसे भेदज्ञान करनेकी विधि है। मुक्तिके मार्गमें भेदज्ञान करनेकी विधि है। एकत्वबुद्धि तोडे देना। मैं चैतन्य ज्ञायक हूँ। (इस प्रकार) दृष्टिकी दिशा पलट देना। और विभाव, समस्त विभावभाव मैं नहीं हूँ। शुभभाव बीचमें आते हैं तो भी शुभभाव भी मेरा स्वरूप नहीं है। बीचमें तो आते हैं, परन्तु मेरा स्वरूप नहीं है। उसको विभक्त करना और स्वभावमें एकत्व करना। मैं अनन्त गुण-से भरपूर ज्ञायकतत्त्व हूँ। उस ज्ञायकको ग्रहण करनआ। शरीर-से, विभाव, नोकर्म मन-वचन-काया, सबसे भिन्न मैं आत्मा हूँ। ऐसी स्वभावमें एकत्वबुद्धि करना और विभाव-से विभक्त करना। यह मुक्तिके मार्गकी विधि है।
ज्ञायक तो अनन्त जाननेवाला है। अनन्त शक्तिओं-से भरपूर है। ज्ञायक ऐसा है कि अनन्त-अनन्त पदार्थको जानता है। ज्ञायककी शक्ति अनन्त है। लेकिन उसकी दृष्टि बदल देना। पर-ओर दृष्टि है, दृष्टि स्वभावमें कर देना। वह मुक्तिका मार्ग है। शुद्धात्माको ग्रहण करके शुद्ध पर्याय प्रगट होती है। उसमें दृष्टि करके, भेदज्ञान इस तरह अविच्छिन्न धारा-से भाना (कि) ज्ञान ज्ञानमें स्थिर न हो जाय, ज्ञान ज्ञानमें स्थिर हो जााय, तबतक अविच्छिन्न धारासे भेदविज्ञान भाना।
स्वभावमें एकत्व और परसे विभक्त। चैतन्यका अस्तित्व ग्रहण करके परसे विभक्त करना। यथार्थ भेदज्ञान तभी होता है, स्वभावका अस्तित्व ग्रहण करे तब पर-से विभक्त होता है। मैं आत्मा हूँ और बाकी सब उपाधि है। बाहरकी सब उपाधि है, मैं एक ज्ञायक आत्मा हूँ।
मुमुक्षुः- मैं आत्मा हूँ, यह विकल्प उपाधि है?
समाधानः- आत्मा हूँ, यह विकल्प भी उपाधि है। वह विकल्प भी राग है। बीचमें विकल्प आते हैं। ज्ञान ज्ञानको ग्रहण करे। बीचमें विकल्प आये बिना रहते नहीं। ज्ञायकको ग्रहण करनेमें विकल्पको गौण कर देना। मैं निरविकल्प तत्त्व हूँ। ज्ञान ज्ञानमें स्थिरो हो जाय, जब स्वानुभूति निर्विकल्प दशा होवे, तब विकल्प छूटता है। विकल्प पहले तो नहीं छूटता, उसका भेदविज्ञान होता है।
मुमुक्षुः- उपाधि क्यों कहा उसे?
समाधानः- उपाधि है, विभावभाव है वह उपाधि है।
मुमुक्षुः- मैं ज्ञायक हूँ, ये विभावभाव है?
समाधानः- ज्ञायक हूँ, ज्ञायकका रागमिश्रित विकल्प है वह उपाधि है। ज्ञायक उपाधि नहीं है। रागमिश्रित विकल्प जो आया वह उपाधि है। ज्ञायक है वह तो निराकुल