Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-५)

२९८

आत्माका एक ज्ञानस्वभाव है वह ऐसा असाधारण है कि वह जान सके ऐसा है। ये सब विकल्पोंके बीच जो है, सब विकल्प चले जाते हैं, परन्तु जाननेवालेका अस्तित्व विद्यमान रहता है, वह जाननेवाला मैं हूँ। उस जाननेवालेमें अनन्त आनन्दादि भरे हैं। परन्तु वह विकल्पके साथ जुडा रहता है इसलिये उसकी अनुभूति उसे नहीं हो रही है। उसका भेदज्ञान करके स्वरूपमें लीन हो तो निर्विकल्प स्वरूप आत्मा है, उसकी अनुभूति हो।

स्वभावमें-से स्वभाव प्रगट होता है। विभावमें-से स्वभाव नहीं आता है। स्फटिक स्वभाव-से निर्मल है। उसमें लाल और पीले फूल रखने-से लाल और पीला दिखता है, परन्तु वह वास्तविक रूप-से निर्मल है। ऐसे आत्मा स्वभाव-से निर्मल है। विभावकी परिणतिके कारण वह विकल्पवाला दिखता है। लेकिन उसका भेदज्ञान करके अंतरमे ं जाय तो उसकी निर्मल पर्याय प्रगट होती है।

स्वभाव-से तो वह वर्तमान द्रव्यदृष्टि-से निर्मल है। वर्तमान अवस्थामें मलिनता दिखती है। परन्तु अंतर दृष्टि करे तो निर्मलता प्रगट होती है। बारंबार उसका अभ्यास करते रहना। वह प्रगट न हो तबतक उसकी महिमा, लगनी, विचार, चिंतवन सबका बारंबार अभ्यास करते रहना। जबतक प्रगट न हो तबतक।

(छाछको बिलोते-बिलोते) मक्खन भिन्न पड जाता है। ऐसे बारंबार अभ्यास करने- से अन्दर भेदज्ञान होकर आत्मा जैसा है वैसा प्रगट होता है। परन्तु उसका अभ्यास और पुरुषार्थ पूरा हो तो होता है। अंतरमें स्वयं जितना रखे उतना होता है, बाकी बाहर तो सब वातावरण अलग होता है।

.. आत्माका कर सकता है। अन्दर पुण्य-पापके उदय अनुसार होता है। चाहे जितना करे तो वह हाथकी बात नहीं रहती। मात्र राग हो कि इसकी दवाई की, यह करे, वह करे, राग हो। बाकी उसका शरीर उसके कारण परिणमता है। आत्मा स्वयं अपना स्वभाव प्रगट कर सकता है। और वह एक अदभुत स्वरूप, अदभुत चीज आत्मा है। अंतर दृष्टि करे तो प्रगट हो ऐसा है।

... स्वानुभूति होने पर सिद्ध भगवान जैसा अनुभव उसे अंतरमें लीन हो तो आंशिकरूप होता है। फिर तो विशेष साधना करने पर आगे बढता है। पहले तो उसकी सच्ची प्रतीति और अनुभूति होती है। फिर विशेष लीनता हो तब आगे बढता है।

मुमुक्षुः- .. करनेकी सूझ आये? आपकी आज्ञा अनुसार अभ्यास और प्रयत्न करता रहता हूँ, परन्तु वह सूझ भी अंतरमें आनी चाहिये न कि अंतरमें... वह मालूम कैसे पडे कि अंतरमें दृष्टि (हुयी है)?

समाधानः- अपना यथार्थ हो तो स्वयंको आत्मामें मालूम पड जाता है कि