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समाधानः- सच्चा प्रयत्न नहीं होता है। प्रयत्न, मन्द-मन्द प्रयत्न हो उसमें पहचान नहीं होती। उसकी रुचि होनी मुश्किल है। उसकी रुचि करे, महिमा करे कि आत्मा कोई अपूर्व चीज है। जगतकी कोई वस्तु अनुपम नहीं है। सबसे अनुपम हो तो आत्मा ही है। ऐसी आत्माकी अनुपम महिमा लगनी चाहिये कि मेरा आत्मा भिन्न है और यह सब भिन्न है। उसकी महिमा लगे। फिर उसका प्रयत्न करे।
रुचिके साथ प्रयत्न होता है। रुचिके बिना प्रयत्न होता ही नहीं। सम्यग्दर्शन हो, अन्दर आत्माकी पहचान हो, उसीको सच्चा मुनिपना आता है। बाहर-से छोड दे वह सच्चा मुनिपना नहीं आता। सच्ची सामायिक, सच्चा तप अंतरमें प्रगटे तो ही उसके साथ सब शुभभाव होते हैैं। तो ही पुण्य बन्ध होता है। बाकी अंतरमें सच्चा तप आदि सब अंतरमें होता है।
मुमुक्षुः- ... समझमें नहीं आता।
समाधानः- विशेष समझनेका प्रयत्न करना चाहिये। कोई समझता हो उसका किसीका परिचय करके विशेष समझनेका प्रयत्न करना चाहिये। शास्त्रमें जो आता है उसका रहस्य क्या है, वह सब अन्दरमें स्वयं आत्माके साथ समझकर विचार करना चाहिये। आत्माका क्या स्वभाव है, शास्त्रमें क्या आता है, गुरुने क्या कहा है, वह मार्ग समझनेका प्रयत्न करना चाहिये।
पहले सच्च समझ करे तो फिर आगे बढे। जो मार्ग नहीं समझता है, वह आगे नहीं बढ सकता है। समझे बिना कहाँ डग भरेगा? ध्येय हो कि भावनगर जाना है तो उसका रास्ता मालूम हो कदम वहाँ चलेंगे। सच्ची समझ पहले करनी चाहिये।
मुमुक्षुः- समझ गुरुके अलावा नहीं आयेगी न? गुरु रास्ता बताये तब...
समाधानः- गुुरु रास्ते बताये, परन्तु..
मुमुक्षुः- गुरुका समागम करे तो ही इसमें आगे बढ सके?
समाधानः- गुरुका समागम, गुरु तो महा प्रबल निमित्त है। उनका समागम हो तो विशेष समझनेका कारण बनता है। अपनेआप समझना बहुत दुष्कर है। अनादि कालमें एक बार कोई गुरुके ऐसे वचन मिले तो जीव तैयार होता है। ऐसा उपदेश मिले