Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-

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तो पर्याय द्रव्यके साथ एकत्वका अनुभव कैसे करती है?

समाधानः- द्रव्यमें पर्याय नहीं है, पर्यायमें द्रव्य नहीं है। वह दृष्टिकी अपेक्षा- से कहनेमें आता है। द्रव्य पर दृष्टि करने-से दृष्टिके विषयमें एक द्रव्य आता है। बाकी सर्व अपेक्षा-से द्रव्यमें पर्याय नहीं है और पर्यायमें द्रव्य नहीं है, वह सर्व अपेक्षा- से नहीं है। पर्यायको द्रव्यका आश्रय है और द्रव्य पर्यायरूप परिणमता है। इस प्रकार दूसरी एक अपेक्षा है। सर्व अपेक्षा-से पर्याय द्रव्य नहीं है और द्रव्य पर्याय नहीं है, वह सर्व अपेक्षा-से नहीं है। पर्याय सर्वथा भिन्न हो तो पर्याय स्वयं द्रव्य बन जाय। सर्व अपेक्षा-से ऐसा नहीं है।

मुमुक्षुः- यहाँ द्रव्य यानी ध्रुव भाव। यहाँ द्रव्य यानी ध्रुव भाव और पर्याय भाव। ऐसे दो भाव लेने हैं।

समाधानः- ध्रुव भाव तो वह अकेला ध्रुव नहीं है। ध्रुवको उत्पाद-व्ययकी अपेक्षा है। उत्पाद-व्यय बिनाका ध्रुव नहीं है। अकेला ध्रुव नहीं हो सकता। उत्पाद-व्ययकी अपेक्षावाला ध्रुव है। कोई अपेक्षा-से अंश भिन्न हैं, परन्तु एकदूसरेकी अपेक्षा रखते हैं।

मुमुक्षुः- पहले निरपेक्ष-से जानना चाहिये और फिर सापेक्षाता लगानी चाहिये अर्थात ध्रुव ध्रुव-से है और पर्याय-से नहीं है। अथवा पर्याय पर्याय-से है और ध्रुव- से नहीं है। इस प्रकार निरपेक्षता सिद्ध करके, फिर सापेक्षता अर्थात द्रव्यकी पर्याय है और पर्याय द्रव्यकी है, ऐसे लेना चाहिये? ऐसा समझनमें क्या दोष आता है?

समाधानः- पहले निरपेक्ष और फिर सापेक्ष। जो निरपेक्ष यथार्थ समझे उसे सापेक्ष यथार्थ होता है। उसमें पहले समझनेमें पहला-बादमें आता है, परन्तु यथार्थ प्रगट होता है, उसमें दोनों साथमें होते हैं। जो यथार्थ निरपेक्ष समझे, उसके साथ सापेक्ष होता ही है। अकेला निरपेक्ष पहले समझे और फिर सापेक्ष (समझे), वह तो व्यवहारकी एक रीत है। अनादि काल-से तूने स्वरूपकी ओर दृष्टि नहीं की है, इसलिये द्रव्यदृष्टि कर। ऐसे द्रव्यदृष्टि कर। पहले तू यथार्थ ज्ञान कर, ऐसा सब कहनेमें आता है।

इस प्रकार तू पहले निरपेक्ष द्रव्यको पहचान। निरपेक्ष पहचानके साथ सापेक्ष क्या है, वह उसके साथ आ ही जाता है। यदि अकेला निरपेक्ष आये तो वह निरपेक्ष यथार्थ नहीं होता।

मुमुक्षुः- अकेला निरपेक्ष है, वह एकान्त हो गया।

समाधानः- वह एकान्त हो जाता है।

मुमुक्षुः- आपका कहना यह है कि समझनेमें पहले निरपेक्ष और बादमें सापेक्ष, ऐसे समझनमें दो प्रकार पडते हैं। वास्तवमें तो दोनों साथ ही हैं।

समाधानः- वास्तवमें दोनों साथ हैं। समझनेमें (आगे-पीछे) होता है।