Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-६)

१० होता है, पहले उसका अभ्यास होता है। इसलिये इसका अभ्यास होना चाहिये।

मैं चैतन्य हूँ, ज्ञायक हूँ। ये सब विभाव है। मैं उसका कर्ता नहीं हूँ। परिणति, अपनी विभाव परिणति चैतन्यकी पुरुषार्थकी कमजोरी-से होती है। लेकिन वह मेरा स्वरूप नहीं है। मैं चैतन्य अनादिअनन्त शुद्धात्मा हूँ। शुद्ध स्वरूपमें दृष्टि करने-से ज्ञान, उसकी लीनता करने-से शुद्ध पर्याय प्रगट होती है। इसके लिये बारंबार उसका अभ्यास करना चाहिये। बारंबार-बारंबार।

मुमुक्षुः- ... विचार या भावना.. ये कैसा पता लगे कि ... या मन्द रागका स्वरूप है? ये पता कैसे लगेगा?

समाधानः- मन्द राग, विकल्प मन्द होवे तो भी शुभभाव आकुलतारूप है। विशेष सूक्ष्म दृष्टि-से देखना चाहिये, उसका लक्षण पहचानना चाहिये कि ये विकल्पका लक्षण है, ज्ञानका लक्षण नहीं है। शुभभाव होवे तो भी आकुलतारूप है।

मुमुक्षुः- मैं तो.. विकल्प पकडमें नहीं आता है तो निर्विकल्प या ... ऐसा कुछ है? कैसे पता लगे? समझमें नहीं आता है कि विकल्प है या कोई राग है, ऐसा पकडमें नहीं आता। तब ... आनन्द या शान्तिका वेदन जो होता है, वह आत्मिक है या रागका है, ...

समाधानः- जिसको सच्चा निर्विकल्प होता है, वह ग्रहण कर लेता है कि यह निर्विकल्प है। उसको विकल्प टूट जाता है। विकल्प, शुभभाव भी टूटकर निर्विकल्प स्वभावमेें लीन हो जाता है। उसके आत्माका भेदज्ञान हो जाता है। उग्रपने पुरुषार्थ करके वह स्वरूपमें ऐसा लीन हो जाता है कि उसे बाहर विकल्पका ख्याल भी नहीं रहता। उपयोग बाहर-से हट जाता है और स्वरूपमें ऐसा लीन हो जाता है कि अपने स्वरूपमें अनन्त ज्ञान और आनन्दादि अनन्त गुणोंका वेदन स्वानुभूति हो जाती है, अपने आप उसे ख्यालमें आ जाता है। जैसा सिद्ध भगवानका स्वरूप है, ऐसा आंशिक रूपसे उसको वेदनमें आता है। उसका उग्रपने ज्ञान करने-से, उग्रपने निर्विकल्प स्वानुभूति हो जाती है। उसका आत्मा उसको जवाब दे देता है कि यह स्वानुभूति ही है, यह विकल्प नहीं है। उसको शंका भी नहीं रहती है। उसको भेद पड जाता है और स्वरूपमें लीन हो जाता है। बाहर उपयोग रहता ही नहीं।

कोई अपूर्व दुनियामें चला जाता है, चैतन्यकी दुनियामें चला जाता है, उसको ख्याल... उसका आत्मा नक्की कर देता है कि यह स्वानुभूति है और यही मोक्षका पंथ है। भीतरमें-से ऐसा निश्चय और वेदन हो जाता है। यह स्वानुभूति है, यथार्थ है। यह स्वानुभूति और भगवान कहते हैं, एक ही स्वरूप है, दूसरा नहीं है। ऐसा आत्मामें-से ऐसा जोर और ऐसी प्रतीति उसको आ जाती है।