Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-६)

३० भीतरमें लीन हो जाता है। स्वरूपकी प्रतीति, ज्ञान उपयोग उसमें लीन हो जाता है। ख्यालमें आ जाता है। उपयोगका काल अंतर्मुहूर्त है। बादमें बाहर आ जाता है।

स्वानुभूति हुयी तो वह ख्यालमें आ जाता है। जगत-से जुदी ऐसी स्वानुभूति, दुनिया- से अनुपम, विभाव-से अनुपम ऐसी स्वानुभूति होती है तो उसको ख्यालमें आ जाता है, ज्ञानमें आ जाता है। स्वानुभूति अंतर्मुहूर्त टिकती है। बाहर आकर ज्ञायककी धारा रहती है। ज्ञायकधारा। उदयधारा और ज्ञायकधारा दोनों चलती हैं। स्वानुभूतिमें अंतर्मुहूर्त रहता है।

मुमुक्षुः- .. दुःख लगता नहीं और आत्माका पता नहीं है। कैसे जानेकी वर्तमान पर्याय दुःखरूप है और आत्मा चैतन्य त्रिकाली है। उसका अनुभव करने-से सुख होता है। कैसा आत्मा, यह पता नहीं चलता है।

समाधानः- वर्तमान पर्यायमें दुःख लगता है?

मुमुक्षुः- नहीं लगता है।

समाधानः- नहीं लगे तो भीतरमें कैसे जाय? जिसको अंतरमें जाना है, उसको विभाव अच्छा नहीं है, मेरा स्वभाव अच्छा है, ऐसी रुचि तो होनी चाहिये। रुचिके बिना भीतरमें नहीं जा सकता। रुचि होनी चाहिये। यह करने लायक नहीं है, यह यथार्थ नहीं है, यह दुःखरूप है। मेरा स्वभाव सुखरूप है। ऐसी रुचि तो होनी चाहिये। यथार्थ स्वभावको बादमें ग्रहण करे, परन्तु रुचि तो होनी चाहिये।

विपरीतता, अशुचिरूप, दुःखरूप, दुःखके कारण, ये सब दुःखरूप है, दुःखका कारण है, ऐसा तो होना चाहिये। जो आत्मार्थी होता है, आत्माका जिसको प्रयोजन है, उसको विभाव अच्छा नहीं लगता है। ये दुःखरूप है, ये अच्छा नहीं है, ये विभाव अच्छा नहीं है। मेरा स्वभाव ही सुखरूप है। ऐसी रुचि तो होनी चाहिये। बादमें ऐसा ज्ञान और प्रतीत, विचार करके दृढ करे। परन्तु रुचि तो होनी चाहिये। रुचि नहीं होती है तो आगे नहीं बढ सकता। मुझे आत्माका करना है। आत्मामें सर्वस्व है, ये विभाव अच्छा नहीं है। ऐसा होना चाहिये।

मैं आत्मा त्रिकाल शाश्वत हूँ। विचार करके, लक्षण-से नक्की करता है कि ज्ञान है वह सुखरूप है, ज्ञानमें आकुलता नहीं है, ज्ञान सुखरूप है। गुरु कहते हैं, देव कहते हैं, शास्त्रमें आता है। विचार करके युक्ति-से, न्याय-से ज्ञान लक्षण-से पहचान लेना चाहिये। रुचि तो होनी ही चाहिये। स्व तरफकी रुचिके बिना आगे नहीं बढ सकता। दुःख तो आत्मार्थीको लगता ही है। ये अच्छा नहीं है। वर्तमान पर्यायजो चलती है वह अच्छी नहीं है। स्वभाव अच्छा है, उसकी रुचि तो होनी चाहिये। जिसको विभाव अच्छा लगता है, वह आगे नहीं बढ सकता।