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पहने थे। देवके रूपमें थे। ऐसे पहचानमें आये कि ये गुरुदेव हैं। गुरुदेव देवके रूपमें ही थे।
गुरुदेवने कहा कि ऐसा कुछ नहीं रखना, मैं यहीं हूँ। देवमें विराजता हूँ, (लेकिन) मैं यहीं हूँ, ऐसा रखना। ऐसा गुरुदेवने कहा। ऐसा हाथ करके कहा। ऐसा हुआ कि ये सब कैसे (समाधान करे)? गुरुदेवने जवाब नहीं दिया। गुरुदेवने दो-तीन बार कहा कि मैं यहीं हूँ, ऐसा ही मानना। मैं यहीं हूँ, ऐसा गुरुदेवने कहा।
... स्वप्न वैशाख शुक्ल-२का था। बादमेंं कहा। गुरुदेवने कुछ जवाब नहीं दिया, सुन लिया। गुरुदेवने कहा, मनमें ऐसा नहीं रखना, मैं यहीं हूँ। मेरा अस्तित्व है, ऐसा ही मानना। हाथ ऐसे करके कहा। गुरुदेव देवके रूपमें थे। हूबहू देवके रूपमें। देवके वस्त्र, मुगट सब देवके रूपमें था।
मुमुक्षुः- तो भी पहचान लिया कि ये गुरुदेव ही हैं।
समाधानः- हाँ, गुरेदव ही हैं, देव नहीं है। मैं यहीं हूँ, ऐसा मानना। मैं कदाचित मानूं, लेकिन ऐसे कैसे मान लें? ऐसा विचार तो आये। ये सब कैसे (माने)? ये बेचारे कैसे माने? गुरुदेव कुछ बोले नहीं। परन्तु गुरुदेवका अतिशय प्रसर गया। उस वक्त सबको ऐसा हो गया। नहीं तो हर साल सबके हृदयमें दुःख होता था। उस वक्त एकदम उल्लास-से सब करते थे।
गुरुदेवने कहा, ऐसा मनमें नहीं रखना। उस वक्त स्वप्नमें बहुत प्रमोद था। उस एकदम ताजा था न। मैं यहीं हूँ। गुरुदेवकी आज्ञा हुयी, फिर कुछ...
गुरुदेव शाश्वत रहे, महापुरुष... अलग थी। मैं तो उनका शिष्य हूँ। उन्होंने जो मार्गका प्रकाश किया, वह कहनेका है। साक्षात गुरुदेव ही लगे, देवके रूपमें। ऐसा कुछ नहीं रखना। मैं यहीं हूँ, ऐसा मानना। कैसे पधारे? कैसे पधारे? गुरुदेव पधारो, पधारो ऐसा मनमें होता था। पूरी रात अन्दर ऐसी भावना रहा करती थी, गुरुदेव पधारो, पधारो। फिर प्रातःकालमें गुरुदेव ऊपर-से देवके रूपमें पधारे हों, ऐसा (स्वप्न आया)। गुरुदेव पधारे।