३२ अस्तित्व ग्रहण करना चाहिये। उसका अस्तित्व ग्रहण करके यह मैं नहीं हूँ और यह मैं हूँ। चैतन्यका अस्तित्व ग्रहण करके बारंबार क्षण-क्षणमें उसका अभ्यास (करे)। मैं ज्ञायक हूँ। जितना ज्ञानस्वरूप, ज्ञायकस्वरूप उतना मैं हूँ, विभाव मैं नहीं हूँ। बारंबार निरंतर इसका अभ्यास करे और उसका उग्र अभ्यास करे तो देर नहीं लगती। अपना स्वभाव है। क्षणमें हो जाता है। पुरुषार्थकी उग्रता होवे तो उत्कृष्ट छः महिने लगते हैं, देर नहीं लगती है। परन्तु अपने पुरुषार्थकी मन्दता है। दुःख-दुःख करे, लेकिन सुख स्वभाव क्या है? उसको ग्रहण करे, उसमें प्रतीत दृढ करे, बारंबार उसकी परिणति प्रगट करे तो होवे।
दुःख लगे तो भी अपना स्वभाव ग्रहण करना चाहिये। स्वभाव ग्रहण करे तो विभाव- से छूट जाता है। स्वभावको ग्रहण करे बिना दुःख-दुःख करे तो भी नहीं छूट सकता है। स्वभावको ग्रहण करे तो छूट जाता है। तो भेदज्ञान हो जाता है। स्वभावको ग्रहण करना चाहिये, अपने अस्तित्वको ग्रहण करना चाहिये। मैं यही हूँ और यह मैं नहीं हूँ, ऐसे बारंबार उसको ग्रहण करनेका अभ्यास करे तो होवे।
मुमुक्षुः- श्रद्धागुण तो निर्विकल्प है...
समाधानः- श्रद्धा निर्विकल्प है, परन्तु पहले विचार-से निर्णय करना चाहिये। पहले तो ऐसा विचार आता है, पहले प्रतीत दृढ नहीं होवे तो विचार करना चाहिये। विचार-से अपना स्वभाव पहचानना चाहिये कि ज्ञानलक्षण, असाधारण ज्ञान लक्षण है। अखण्ड द्रव्यको पीछानना चाहिये। ज्ञान-से विचार करे। प्रतीत तो दृढ (बादमें होती है)। पहले विचार आता है। तत्त्वका विचार। बारंबार मैं भिन्न हूँ, यह मैं नहीं हूँ। स्वभावको भीतर-से उसका लक्षण पीछानकरके नक्की करना चाहिये।
श्रद्धा भले निर्विकल्प हो, ज्ञान काम करता है। ज्ञानमें विचार (करके), नक्की करके श्रद्धाको दृढ करना चाहिये। मुक्तिका मार्ग सम्यग्दर्शन-से प्रगट होता है। परन्तु जब पहले सम्यग्दर्शन नहीं होवे तब विचार, यथार्थ ज्ञान करना चाहिये। ज्ञान बीचमें आता है। प्रतीतको दृढ करना।
समाधानः- ... गुरुदेवको सब शोभा दे। वहाँ स्टेजमें बैठना, करना आदि... गुरुदेवकी छत्रछायामें अपने तो बोल लेते हैं।
मुमुक्षुः- हम तो गुरुदेवकी आज्ञाका पालन करते हैं। गुरुदेव कहकर गये हैं...
समाधानः- चित्र आदि सब था न, इसलिये वहाँ मनमें ऐसी भावनाका घोटना होता था कि ये सब है, गुरुदेव पधारे। ऐसी भावना (होती थी)। बस, ऐसे ही घोटन चलता था कि गुरुदेव पधारे तो अच्छा। प्रातः कालमें स्वप्नमें ऐसा आया कि गुरुदेव ऊपर-से पधार रहे हैं। ऐसा कहा, पधारो गुरुदेव। गुरुदेव देवके रूपमें थे। देवके वस्त्र