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ऐसा नहीं है।
वह ज्ञेयोंका स्वरूप जानता है। ज्ञानमें सब ज्ञेयोंका स्वरूप आता है। अनन्त ज्ञेय जो जगतमें हैं, छः द्रव्य, उसके द्रव्य-गुण-पर्याय, उसका भूत-वर्तमान-भविष्य सब उसके ज्ञानमें आता है। यदि ज्ञानमें न आये तो उसे ज्ञानस्वभाव कैसे कहें? ज्ञानगुण उसे कहते हैं कि जिसमें मर्यादा न हो, ऐसा गुण हो। इसलिये वह पूर्ण जानता है। ज्ञानमें उसे सब आता है। उपयोग बाहर नहीं जाता, अपनी परिणतिमें रहकर, ज्ञान ज्ञानमें रहकर सब जानता है। ऐसा उसका स्वभाव है। इसलिये स्वपरप्रकाशक इस तरह है।
परमें जाकर, उसका क्षेत्र छोडकर बाहर नहीं जाता है। अपने क्षेत्रमें रहकर जाने, यानी ज्ञान ज्ञानके स्वरूपको जाने, ज्ञान ज्ञानको जाने, ऐसा कहनेमें आता है। लेकिन वह ज्ञान ज्ञानको जाने इसलिये उसमें दूसरेका ज्ञान आता ही नहीं है, ऐसा नहीं है। पूरे लोकालोकका ज्ञान, नर्क, स्वर्ग, पूरे लोकालोकका ज्ञान, छः द्रव्य, उसके द्रव्य- गुण-पर्याय, भूत-वर्तमान-भविष्य कुछ न जाने, यदि वह नहीं जानता हो तो। ज्ञानमें सब आता है। अतः ज्ञान स्वपरप्रकाशक है।
केवलज्ञान होता है तब सहज ज्ञात होता है, उसका स्वभाव ही है। नहीं होता तबतक उसका अधूरा ज्ञान है। स्वयं अपने स्वरूपमें रहे इसलिये उसका उपयोग बाहर नहीं होता, इसलिये निर्विकल्पताके समय उसे बाहरका उपयोग नहीं है। बाकी उसके ज्ञानका नाश नहीं हुआ है। ज्ञानकी शक्ति तो अमर्यादित है।
मुमुक्षुः- मतलब उपयोगात्मक रूपसे बाहरका जानना उस वक्त नहीं होता।
समाधानः- नहीं है, उपयोगात्मक नहीं है। बाकी उसमें ऐसी जाननेकी शक्ति नहीं है, ऐसा नहीं है। प्रत्यभिज्ञान... ज्ञान तो है, ऐसा स्वभाव है। तो भूतकालका कुछ जाने ही नहीं, भविष्यका कुछ जाने ही नहीं। ऐसा नहीं है। केवलज्ञान होने- से पहले पूर्वका सब जाने ऐसा उसका .. है। नहीं है, ऐसा नहीं।
मुमुक्षुः- पूर्वका जानता है, वर्तमान जानता है और भविष्यका..
समाधानः- भविष्यका जाने, सब जान सकता है। ऐसा उसका स्वभाव है। उसकी दिशा पर तरफ-ज्ञेय तरफ (है)। तेरी दिशा बदल दे। तेरी दिशा स्वसन्मुख कर दे। तेरे स्वद्रव्य तरफ तेरी दिशा बदल दे। बाकी कुछ ज्ञात नहीं होता है, ऐसा नहीं है। अपनी परिणति स्व-ओर गयी और उपयोग स्वयं निर्विकल्प स्वरूपमें स्थिर हुआ, इसलिये बाहरका उपयोग नहीं है, इसलिये ज्ञात नहीं होता। उसका स्वभाव नाश नहीं हुआ। वह अधूरा ज्ञान है इसलिये क्रम-क्रम-से ज्ञान जानता है। उपयोग अन्दर स्थिर हो गया, इसलिये बाहरका ज्ञात नहीं होता।
मुमुक्षुः- उपयोगात्मक स्थिति अलग है और स्वभावकी स्थिति..