Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-२५१

तो, मानों साक्षात गुरुदेव हैं! ऐसा विकल्प एकदम आ गया।

मुमुक्षुः- आपका विकल्प भी...

समाधानः- ऐसा हो गया। यहाँ आये, परन्तु इस पंंचमकालमें दर्शन दुर्लभ है, ऐसा है।

समाधानः- ... विशिष्ट व्यक्ति हो, कुछ विशेषतावाली हो ऐसा समझ लेना। उसमें जो विशिष्टता है, उसमें कुछ विशिष्टता भरी है, भविष्यकी और भूतकालकी सब विशिष्टता है। ... पूर्व भवके संस्कार लेकर ही आये हैं। .. गुरुदेवके सान्निध्यमें ऐसी विशिष्टता उनमें रही है। गुरुदेव तीर्थंकरका द्रव्य, महान समर्थ गुरुदेव हैं, उनके सान्निध्यमें जो विशिष्ट व्यक्तिके रूपमें है, तो उनमें कुछ विशिष्टता है ही, ऐसा आपको समझ लेना। गुरुदेव...

समाधानः- .. पुरुषार्थ हो न। स्वभावको जाने बिना कहाँ-से हो? स्वभाव क्या है यह जानना चाहिये। .. प्रत्येकमें अपना प्रयोजन होना चाहिये। ओघे ओघे बहुत बार किया है। परन्तु आत्माका ध्येय प्रत्येकमें होना चाहिये। प्रयोजन बिना सब किया है। आत्माका प्रयोजन होना चाहिये।

जैसा भगवानका आत्मा है, वैसा अपना आत्मा है। अपना स्वभाव जैसा भगवानका है, वैसा अपना है। ऐसा समझनेका प्रयोजन होना चाहिये। महिमावंत उन्होंने सब प्रगट किया-वीतराग दशा, केवलज्ञान (आदि)। भगवान महिमावंत हैं, ऐसा शक्ति-से अपना स्वभाव है, वह कैसे पहचाना जाय? शास्त्रमें द्रव्य-गुण-पर्यायकी बात आये। मैं चैतन्यद्रव्य हूँ। मेरेमें अनन्त गुण हैं, मेरेमें पर्याय हैं, वह किस तरह है? ऐसे अपना चैतन्यद्रव्य पहचाननेका प्रयोजन होना चाहिये।

चैतन्य भगवान, तू भगवान आत्मा है। तू तुझे देख, तू भगवान आत्मा है। शास्त्रमें आता है न कि आओ, यहाँ आओ। यह अपद है, तुम्हारा पद नहीं है। यह चैतन्यपद आत्माका है, उसे पहचानो।

मुमुक्षुः- देव-गुरु-शास्त्रके बिना स्वयंको चले नहीं, यह तो आपने गजबा बात कही।

समाधानः- मार्ग पर चलता हो, दूसरे गाँव जाता हो, चलता है अपने-से, परन्तु साथीको साथमें रखता है। ऐसे मैं भले ही मेरे-से प्रयत्न करुँ, परन्तु पंच परमेष्ठी भगवंत मेरे साथ पधारिये, मैं आपको साथमें रखता हूँ। आप जिस मार्ग पर चले उस मार्ग पर मुझे चलना है। मार्ग दर्शानेवालेको साथमें रखता है।

जिनेन्द्र भगवान, जिन्होंने मार्ग देखा है, गुरु जो मार्ग बता रहे हैं, आचार्य, उपाध्याय आदि सब साधना करते हैं, उन सबको मैं साथमें रखता हूँ। मैं मार्ग पर जाऊँ, मार्ग