७४ लक्षण पर-से वह पदार्थको पहचान सकता है।
अरूपी होने पर भी उसका लक्षण ऐसा है कि पहचान सके ऐसा है और स्वयं ही है, अन्य नहीं है। वह तो क्षण-क्षणके भाव पलट जाते हैं। फिर भी जाननेवाला तो ऐसे ही खडा रहता है। जानन लक्षण तो ज्योंका त्यों है। इसलिये वह उसे पहचान ले कि यह जाननेवाला तो ज्योंका त्यों है, बाकी सब भाव तो चले जाते हैं। जो कलुषिततावाले भाव वेदनमें आनेवाले हैं वह चले जाते हैं। परन्तु जाननेलवशापला ज्याेंका त्यों रहता है। वह जाननेवाला कौन है? उसे पहचान सके ऐसा है। अरूपी होने पर भी उसके स्वरूपसे पहचाना जाता है।
मुमुक्षुः- दिक्कत कहाँ आती है कि राग-द्वेषके परिणाममें आकुलतारूप वेदनमें आते हैं इसलिये ख्यालमें आता है। ज्ञान निर्विकल्प है। अतः वेदनमें आता होने पर भी वेदनमें नहीं आने जैसा दिखता है।
समाधानः- वह सूक्ष्म उपयोग नहीं करता है। वह स्थूल है इसलिये स्थूल वेदनको पकड लेता है। परन्तु यह तो शान्तिका लक्षण है, जिसमें आकुलता नहीं है, मात्र जानना ही है। उसमें कुछ करना ऐसा नहीं आता है। मात्र विचार करे तो वह सूक्ष्म है, परन्तु उसमें मात्र जानना ही रहा कि ये सबको जाननेवाला कौन है? उस जानन लक्षणमें शान्ति भरी है। परन्तु वह सूक्ष्म होकर देखे तो उसे पहचान सकता है। वह स्थूलता युक्त है इसलिये स्थूलता-से पहचान लेता है।
इसमें अन्दर गहराई-से देखे तो जाननेमें आकुलताका वेदन नहीं है, परन्तु यदि देखे तो जाननेवालेमें शान्तिका लक्षण रहा है कि जिसमें आकुलता नहीीं है। जिसमें कुछ करना नहीं है, मात्र जानना है, ऐसा शान्तिका लक्षण, निराकुलता लक्षण है। उसे पहचान सकता है। स्वयं सूक्ष्म होकर देखे तो पहचान सके ऐसा है। लक्षण पर- से लक्ष्यको पहचाने कि यह जानन लक्षण जो है वह किसके आधार-से है? किसके अस्तित्वमें है? चैतन्यके अस्तित्वमें। जो अस्तित्व अनादिअनन्त शाश्वत है कि जिसका नाश नहीं होता। ऐसा अनादिअनन्त अस्तित्व वह चैतन्यद्रव्य मैं हूँ। और उसमें ही सब भरा है। उसमें अनन्त धर्म आदि सब बादमें नक्की कर सकता है। लक्षण-से यदि लक्ष्यको पहचाने तो।
मुमुक्षुः- लक्षण तो शान्त लक्षण यानी निर्विकल्परूप-से ख्यालमें लेने जाते हैं वहाँ तो उससे पार लक्ष्यभूत पदार्थको लक्ष्यमें लेता हूँ, उतनेमें तो उपयोग (छूट जाता है)। मुश्किल-से रागको भिन्न करे, प्रगट ज्ञानका थोडा ख्याल आया नहीं आया, उतनेमें तो उपयोग पलट जाता है।
समाधानः- वह उसे बुद्धिपूर्वक लक्ष्यमें लेता है कि यह स्थूल लक्षण सो मैं।