२५२
सूक्ष्म लक्षण ज्ञानका, वह मैं हूँ। उस तरफ जाय, उसे लक्ष्यमें ले तो बुद्धिपूर्वक है। अभी निर्विकल्परूप परिणति नहीं है, निर्विकल्प स्वानुभूति भी नहीं है, परन्तु उसे लक्षण- से पहचाने-नक्की करे कि जिसमें विकल्प नहीं हैं, मात्र जानना निराकुल लक्षण है, उसे पहचाने। भले ही उपयोग पलट जाय तो भी बारंबार ग्रहण करनेका प्रयत्न करे। बुद्धि-से नक्की करने जाय और उपयोग पलट जाय तो उसे बारंबार नक्की करनेका प्रयत्न करे कि ये जो ज्ञान लक्षण है वही मैं हूँ और उसे धारण करनेवाला चैतन्य द्रव्य पदार्थ सो मैं हूँ, इसप्रकार स्वयंके अस्तित्वको नक्की करनेके लिये प्रयत्न करे।
निर्विकल्प परिणति तो बादमें होती है। पहले तो उसे प्रतीत करता है कि यह अस्तित्व है सो मैं हूँ। यह विभाव मैं नहीं हूँ। निर्विकल्प स्वानुभूतिमें जो आनन्द वेदनमें आये वह अलग अनुभवमें आता है। यहाँ ज्ञानमें तो मात्र उसे शान्ति, यह ज्ञान लक्षण शान्तिवाला है, उतना ही उसे ग्रहण होता है। आनन्दकी अनुभूति तो उसे निर्विकल्प स्वानुभूतिमें प्रगट होती है। आत्मा पूरा ज्ञान, आनन्द सागर-से भरा, ज्ञान-से भरा है। वह उसे स्वानुभूतिमें वेदनमें आता है। यह तो मात्र उसे लक्षण-से प्रतीतमें आता है। उपयोग पलट जाय तो बारंबार नक्की करनेका प्रयत्न करे। वह सहज न हो तबतक उसका प्रयत्न करना।
मुमुक्षुः- अनुभव होने-से पहले ऐसा सहज होगा?
समाधानः- अनुभव पूर्व उसे बारंबार पलट जाता है तो बारंबार अभ्यास करे तो दृढता तो हो। वास्तविक सहजता बादमें होगी, लेकिन एक दृढतारूप हो सकता है।
मुमुक्षुः- अपूर्व अवसरमें मुनिपदकी भावना भायी है। क्योंकि सम्यग्दृष्टि है और आत्माको देखा है। सम्यग्दर्शन प्राप्त होने पूर्व जीव आगे बढता है, वह अस्तित्वकी अव्यक्त पक्कड-से आगे बढता है? मिथ्यादृष्टिने तो कुछ देखा नहीं है। सम्यग्दृष्टिने अस्तित्व देखा है और मुनिपदकी भावना भाते हैं। मिथ्यादृष्टिने अस्तित्व नहीं देखा है, तो अव्यक्तपने उसके अस्तित्वके विश्वास-से आगे बढता है?
समाधानः- है ही, ऐसे वह नक्की करता है। उसके लक्षण-से पहचान सकता है। अस्तित्व देखा नहीं है, परन्तु उसे अन्दर भाव होता है कि यह लक्षण किसका है? यह चैतन्यका लक्षण है। इसप्रकार मति-श्रुत द्वारा नक्की करनेकी उसमें वैसी योग्यता है कि पहले वह नक्की कर सकता है। सहज बादमें होता है, परन्तु नक्की तो कर सकता है।
मुमुक्षुः- इस ओर अस्तित्व और इस ओर विभाव-से भिन्न नास्तित्व, इसप्रकार आगे (बढता है)?
समाधानः- ऐसा अभ्यास करता है। अनादि काल-से उसने बाहर-से मुनिपना