७६ ले लिया वह अलग बात है। परन्तु जो जिज्ञासाकी भूमिकामें है, वह उसका अभ्यास करता है। बाकी जो कुछ समझते नहीं है कि अंतरमें आत्माका अस्तित्व है, ये विभाव- से भिन्न है, उसकी बात नहीं है। वे सब तो क्रियामें पडे हैं। परन्तु जिसे रुचि हुयी है कि आत्मा कोई अपूर्व चीज है और मुक्तिका मार्ग अंतरमें रहा है, ऐसी रुचि है, जिज्ञासा है, तो वह बारंबार अभ्यास-से आगे बढता है कि यह चैतन्यका अस्तित्व भिन्न है, विभाव भिन्न है। चैतन्य अनन्त गुण-से भरा है। उस प्रकारके अभ्यास-से विचार करके, नक्की करके आगे बढता है।
बाकी जो क्रियामें पडे हैं, जिन्हें कुछ रुचि नहीं है, अंतरमें कुछ अपूर्वता नहीं लगी है, वे तो बाहर क्रियामें पडे हैं। गुरुदेवने ऐसा मार्ग बताया कि अन्दर कोई वस्तु अलग है और मुक्तिका मार्ग अंतरमें है। स्वानुभूति अंतरमें प्रगट होती है। उसका अभ्यास करके आगे बढता है कि मैं चैतन्य भिन्न, यह विभाव भिन्न है। द्रव्य-गुण- पर्याय अनन्त मेेरेमें हैं। मैं एक अखण्ड चैतन्य हूँ। गुणभेद नहीं है, सब लक्षणभेद है। अनेक प्रकार-से नक्की करके तत्त्वका स्वरूप समझकर आगे बढता है।
सम्यग्दर्शनके बाद तो उसे आगे बढनेके लिये उसे मुनिदशाकी भावना आती है। वह तो स्वरूपकी दशा कैसे बढे? स्वरूपकी दशा बढने पर बाहर ऐसा निमित्त-नैमित्किक सम्बन्ध है कि उसे मुनिपना आ जाता है। अंतरमें चैतन्यकी परिणतिकी दशा कैसे आगे बढे, ऐसी भावना होती है।
मुमुक्षुः- जिज्ञासुकी भूमिकामें चाहे जितने सवाल आपको पूछते हैं और जवाब आते हैं, उसमें नवीनता आती हो, सुनते ही रहे, ऐसा होता है। भले ही प्रश्न एक जातके हो, परन्तु ... कुछ कहते हैं।
समाधानः- प्रश्न एक जातके हों, जवाब उसी जातके होते हैं।
मुमुक्षुः- जवाब तो हमें भिन्न-भिन्न लगते हैं। ... ऐसे जवाब आते हैं। शल्य असंख्य प्रकारके हैं तो बहुत प्रकारके ...
समाधानः- गुरुदेवके प्रताप-से गुुरुदेवने सबको अंतर दृष्टि करवायी कि अंतरमें मार्ग है, और कहीं नहीं है। बाकी तो सब व्रतके दिवस आये तो बाहर-से कुछ होता है। बाहरके व्रत और उपवास आदि बहुत करें तो अपने धर्म हो जाता है, ऐसा सब माननेवाले जीव होते हैं। परन्तु गुरुदेवने अंतर दृष्टि करवायी। अंतरमें हो, उसके साथ सब शुभ परिणाम होते हैं। रुचिवालेको भी होते हैं। सम्यग्दर्शन होनेके बाद भी शुभभाव होते हैं। मुनिदशा होनेके बाद भी पंच महाव्रतादि होते हैं। परन्तु वह हेयबुद्धि-से आते हैं। अपनी परिणति न्यारी हो गयी है। स्वानुभूतिकी दशा प्रगट हुयी है।