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मुमुक्षुः- प्राप्ति उत्सर्ग मार्ग-से ही है।
समाधानः- प्राप्ति तो उत्सर्ग मार्ग-से होती है, तो भी बीचमें आता है। उत्सर्ग- अपवादकी मैत्री होती है। जबतक केवलज्ञान नहीं होता तबतक शुभभाव बीचमें ... ऐसा आता है। शुभभाव-से मुक्ति नहीं होती, मुक्ति तो उत्सर्ग स्वानुभूति-से होती है। मुक्ति इससे होती है, केवलज्ञान इससे होता है। परन्तु वह बीचमें आता है। जबतक उत्सर्गरूप परिणमन नहीं होता, तबतक बीचमें अपवाद होता है। परन्तु अपवाद अपनेको लाभ करता है, ऐसी श्रद्धा नहीं होनी चाहिये। बीचमें उत्सर्ग और अपवाद दोनों साथमें होते हैं। शुभभाव बीचमें आता है। प्राप्ति तो शुद्धउपयोग-से होती है। यथार्थरूप-से तो शुद्धउपयोग-से पोसना होता है। व्यवहार-से शुभभाव-से पोसना होता है।
मुमुक्षुः- ध्याये बनाया हो तो हमको तो..
समाधानः- ध्येय शुद्धात्माका रखना चाहिये और बीचमें शुभभाव आता है। अशुभमें नहीं जाना। जबतक तीसरी भूमिका शुद्धात्माकी प्राप्त नहीं होती तबतक शुभभाव बीचमें आता है। वह भूमिका रहती है। व्यवहार-से उसका पोसना कहनेमें आता है। वास्तविक पोसना तो शुद्धात्मा... व्यवहार-से पोसना ... व्यवहार बीचमें आता है।
बारंबार मुझे ज्ञायककी प्राप्ति होवे, मुझे ऐसी स्वानुभूति होवे। ऐसा अभ्यास बारंबार, गहरी लगन, बारंबार मुझे ज्ञायकतत्त्व कैसे प्राप्त हो, ऐसी भावना रहे। देव-गुरु-शास्त्रका सान्निध्यका शुभभाव, बीचमें शुद्धात्माकी भावना रहे, उसके संस्कार रहे। वह संस्कार साथमें आते हैं। गहरे संस्कार (डाले), ज्ञायकका अभ्यास करे वह संस्कार रहते हैं। बीचमें जो शुभभाव होता है, देव-गुरु-शास्त्रके, उससे जो पुण्यबन्ध होता है तो उसके योग्य बाहरमें साधन मिल जाते हैं-देव-गुरु-शास्त्र। भीतरमें ज्ञायकका संस्कार डालने चाहिये। शुभभाव बन्धता है, उससे बाहरमें साधन मिलता है और भीतरमें शुद्धात्माका संस्कार।
मुमुक्षुः- कैसा पुरुषार्थ (होता है)?
समाधानः- सबका एक ही उपाय है-शुद्धात्माको पहचानना।
मुमुक्षुः- पहचानना कौन-से पुरुषार्थ-से? कैसे?
समाधानः- यह पुरुषार्थ-स्वयंको शुद्धात्माकी लगनी लगे। जो कार्य करनेके पीछे लगे तो होता है। व्यवहारमें कोई कार्य करना हो तो उसके पीछे लगता है। तो शुद्धात्माका स्वभाव पहिचाननेके लिये स्वयं बाहरमें रुकता है, अन्दरमें ... मुझे शुद्धात्मा कैसे प्राप्त हो? उसकी लगन, उसके पीछे लगे। उसका स्वभाव पहचाननेके लिये बारंबार-बारंबार, बारंबार-बारंबार (प्रयत्न करे)। छूट जाय तो भी बारंबार-बारंबार उसके लिये ही प्रयत्न करना चाहिये। एक ही उपाय है-शुद्धात्माको पहिचानना, उस पर दृष्टि करनी, उसका ज्ञान करना, उस ओर परिणति करनी। उपाय एक ही है।