समाधानः- ... वह भी अपूर्व नहीं है। वह सब अनादि कालमें परिचयमें आया, अनुभवमें आया। आत्माका स्वभाव परिचयमें, अनुभवमें आया नहीं। गुरुदेवकी वाणीमें वह बात आती थी। वह कोई अपूर्व वस्तु है। जगत-से कोई .. अपूर्व (है)। ज्ञायकमें अनन्त शक्तियाँ भरी है, अनन्त आनन्द भरा है। अनन्त धमा-से आत्मा भरा ही है। कोई अपूर्व तत्त्व है। उसकी कोई उपमा जगतमें नहीं है। वह तो अनुपम है।
आत्मतत्त्व तो कोई अपूर्व है। उसकी ज्ञायकता अनन्त काल जाने और अनन्त लोकालोकको जाने तो भी उसका ज्ञानस्वभाव खत्म नहीं होता। लोकालोकको एक समयके अन्दर एक अणुरेणुवत जान लेता है तो उसमें कोई वजन नहीं हो जाता। जैसा ज्ञायकका स्वभाव कोई जाननेका अपूर्व है, ऐसा आनन्दका स्वभाव कोई अपूर्व है। अनन्त काल तक जाने तो उसमें-से कम नहीं होता। उसमें अनन्त शक्ति है। एक समयमें अनन्त द्रव्य, अनन्त क्षेत्र, अनन्त काल, अनन्त भाव अपनेको, परको, सबके अनन्त भावोंको सबको एक समयमें स्वरूपमें जब लीन होता है, केवलज्ञान होता है तो एक समयमें जान लेता है। उसकी ज्ञायककी शक्ति कोई अपूर्व, अपूर्व अनुपम है।
एक समयमें लोकालोकके अनन्त द्रव्य, अनन्त पुदगल, चैतन्य, धर्मास्ति, अधर्मास्ति सबके अनन्त धर्म, उसका द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव, अपना द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव सबको एक समयमें जान लेता है। ऐसी कोई शक्ति अपूर्व है। अनन्त शक्ति-से ज्ञायक स्वभाव ...
ज्ञायकको पहचानना। वह परको जानता है इसलिये अपूर्व नहीं, उसकी शक्ति ही ऐसी अपूर्व है। अमर्यादित, अमाप शक्ति है। ज्ञायककी महिमा लगनी चाहिये, अनुपमता लगनी चाहिये। उसका आनन्द स्वभावका जगतमें कोई मेल नहीं है। उसकी उपमा नहीं है। ऐसा कोई अपूर्व आनन्द है कि जिसकी जगतमें तुलना नहीं (हो सकती)। ऐसा अनुपम आनन्द, अनुपम ज्ञान, अनन्त धर्म (हैं)। ज्ञायकतत्त्व अपूर्व है।
मुमुक्षुः- ..
समाधानः- ऐसे शुभभाव तो बीचमें आता है। स्वरूपमें लीन हो जाना, मुनि स्वानुभूतिमें बारंबार लीन होेते हैं। बीचमें शुभभावमें ... होता है, वह अपवाद मार्ग है।