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आगे ज्ञानमें वह लक्षण-वह भाव स्थिर रहे, ऐसा नहीं होता।
समाधानः- .. होता है इसलिये टिकता नहीं। मात्र विकल्पसे ग्रहण होता है इसलिये वह टिकता नहीं। बारंबार विचार करे तब उसे ख्यालमें आता है। वह स्थूल है। अन्दर जो जानने वाला है वही मैं हूँ, ऐसे अन्दरसे ग्रहण होना चाहिये। मेरा अस्तित्व, यही मैं हूँ। लगनी लगे तो वह ग्रहण हो ऐसा है। फिर टिके कितना वह उसके पुरुषार्थ अनुसार (होता है), परन्तु वह अन्दरसे ग्रहण हो सके ऐसा है। विकल्प, रागादि हो तो भी वह गौण होकर, यह जानने वाला मैं हूँ, ऐसे ग्रहण हो सके ऐसा है।
मुमुक्षुः- आप कहते हो वह ख्यालमें आता है कि, ज्ञायकका अस्तित्व तू ग्रहण कर और वह तेरा अस्तित्व..
समाधानः- ... लक्षण भिन्न नहीं है। वह स्वयं ही है। लक्षण और लक्ष्य दोनों एक ही है, दोनों भिन्न-भिन्न नहीं है। जिसका लक्षण है वह स्वयं ही है। द्रव्य स्वयं ही है, वह लक्षण द्रव्यका ही है। लक्षण और लक्ष्य दोनों एक ही है, दोनों अलग नहीं है। मात्र गुणभेद होता है। ग्रहण जो होता है वही वस्तु है। वस्तु स्वयं उस लक्षणसे भिन्न नहीं है। दोनों अभेद ही है। ... ऐसा क्रम नहीं पडता कि यह लक्षण, यह लक्ष्य। ऐसा भेद नहीं पडता। जो लक्षणको पहचानने जाता है, वह स्वयं लक्ष्यको पहचानता है। उसमें भेद नहीं पडता। जो यथार्थरूपसे लक्षणको पहचानता है, उसे लक्ष्य- लक्षणका भेद नहीं पडता। यह लक्षण है वही मेरे द्रव्यका स्वंयका है। उसे साथमें ग्रहण होता है।
गुणभेद तो एक... उसमें अनन्त गुण है, उस अपेक्षासे गुणभेद होता है। कि ये ज्ञान जाननेका लक्षण, आनन्दका आनन्द लक्षण, ऐसे लक्षण भिन्न पडते हैं। लेकिन ज्ञानलक्षण असाधारण है। पूर्ण ज्ञायक, जानने वाला चारों ओरसे जानने वाला ही है। वह जानने वाला है वही मैं हूँ, द्रव्य और गुण दोनों गुणभेदसे भिन्न पडते हैं, वस्तुभेदसे भिन्न नहीं है। इसमें तो उसे वस्तु ग्रहण करनी है। इसलिये जो लक्षणको ग्रहण करने जाये उसका ध्येय तो वस्तुको ग्रहण करनेका है। जो लक्षण ग्रहण करता है, वह लक्ष्यको साथमें ग्रहण करता है। यथार्थरूपसे हो तो।
मुमुक्षुः- आपको ऐसा कहना है कि, जिसे तीव्र लगन लगी, वह लक्षण पकडने जाता है वहाँ पूरा लक्ष्य ही ग्रहण हो जाता है?
समाधानः- हाँ, यथार्थ लक्षण ग्रहण करे तो लक्ष्य ग्रहण हो जाता है। अन्दर उसका ध्येय यह है कि मुझे पूर्ण द्रव्य ग्रहण करना है। मात्र लक्षण ग्रहण करनेका उसका ध्येय नहीं है। ज्ञान है वह असाधारण लक्षण है।
मुमुक्षुः- आपको ऐसा कहना है कि लक्षण ग्रहण हो तो लक्ष्य सीधा एक