९० स्वभाव स्वपरप्रकाशक है। अपनेको भी जानता है, परको भी जानता है। परन्तु आबालगोपाल आत्माका असाधारण लक्षण है। ज्ञानस्वभाव है वह असाधारण है। ज्ञानस्वभाव... सबको यथार्थ ज्ञान नहीं है, परन्तु उस ज्ञानस्वभावका नाश नहीं हुआ है। ये सब जाननेवाला जो ज्ञान है, वह ज्ञान ज्ञानरूप (रहा है)। अनुभूति है, वह ऐसी स्वानुभूति नहीं है, उसका वेदन नहीं है। तो भी ज्ञान ज्ञानरूप रहता है, ज्ञान ज्ञानरूप परिणमन करता है। वह यथार्थ नहीं। परन्तु ज्ञानका नाश नहीं हुआ। ऐसे ज्ञायक स्वभावका ग्रहण सब आबालगोपाल कर सकते हैं।
ज्ञानस्वभावका नाश नहीं हुआ है। ज्ञानस्वभाव तो जैसा है वैसा ही है। परन्तु अपनेको भ्रान्तिके कारण पर तरफ दृष्टि करता है, पर तरफ जाता है, परका ज्ञान करता है, पर तरफ आचरण करता है, सब पर तरफ करता है। स्वसन्मुख होता नहीं है इसलिये ख्यालमें नहीं आता है। ज्ञान ज्ञानरूप रहता है। ज्ञान कहीं जड नहीं हो जाता है। ज्ञान ज्ञानरूप रहता है।
अनादि काल हुआ तो भी ज्ञान ज्ञान ही है। ज्ञान, चेतन चेतन ही है, जड नहीं हुआ। जो विभाव होता है उसमें देखना चाहिये कि इसमें ज्ञानस्वभाव क्या है? रुचि करे, प्रतीत करे तो सब आबालगोपाल जान सकते हैं। ज्ञानस्वभाव ज्ञानस्वभाव ही है, उसका अज्ञान नहीं हुआ।
मुमुक्षुः- गुरुदेव तो ऐम फरमाते थे कि भगवान आत्मा सबको जाननेमें आता है।
समाधानः- हाँ, भगवान आत्मा सबको जाननेमें आता है। जो उस तरफ दृष्टि करे तो जाननेमें आता है। भगवानस्वरूप आत्मा, शक्तिरूप भगवान आत्मा है। सबकुछ जान सकता है। ऐसा नहीं है कि यह जान सकता है और यह नहीं जान सकता है। जो आत्मा तरफ रुचि करे वह सब जान सकते हैं। ज्ञान ज्ञानरूप है। ज्ञान जड नहीं हुआ है। सब जान सकते हैं, भगवान आत्माको सब जान सकते हैं। जो पुरुषार्थ करे वह जान सकता है। नहीं करे तो नहीं जान सकता है।
... लाल-पीले फूल-से वह लाल-पीला हो नहीं जाता है। स्फटिक तो स्फटिक ही है। वैसे ज्ञायक ज्ञायक ही है। परन्तु पर तरफ उपयोग, दृष्टि सब पर तरफ है। इसलिये उसको ख्यालमें नहीं आता है। अपनी तरफ यदि दृष्टि करे तो जान सकता है। ज्ञान ज्ञानरूप ही है। वह जड नहीं हुआ है। आबालगोपाल सबको ज्ञान ज्ञानरूप ही है। वह जड नहीं हुआ है। भगवान आत्मा जैसा है वैसा है, जड नहीं होता है। जैसा है वैसा ही परिणमता है। प्रगटरूप नहीं, शक्तिरूप। परन्तु वह ज्ञान ऐसा है कि असाधारण लक्षण सबको जाननेमें आ सकता है।
समाधानः- .. क्षमा, आर्जव, मार्दव धर्म सब दस धर्म मुनि आराधते हैं। दस