Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-६)

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शास्त्रमें ऐसा आता है, गुरुदेव भी ऐसा ही कहते थे कि यथार्थ निर्णय, यथार्थ कारण हो तो यथार्थ कार्य आये बिना नहीं रहता। ऐसा शुद्धात्माका अंतरमें-से उसे निर्णय होता है। उसका अंतर ही कह देता है कि इसमें अवश्य स्वानुभूति होगी ही।

मुमुक्षुः- माताजी! आपका वजन स्वभावको पहिचानकर निर्णय हो, वह यथार्थ निर्णय है। ऐसा आपका वजन आया है।

समाधानः- हाँ, स्वभावको पहिचानकर निर्णय होता है कि यह ज्ञान है वही मैं हूँ। ये विभाव है वह मैं नहीं हूँ। ऐसा बुद्धि-से स्थूलता-से हो वह अलग है, परन्तु अंतरमें-से उसे ग्रहण करके निर्णय होता है कि यह स्वभाव है वही मैं हूँ। अंतरमें-से भाव ग्रहण करता है।

मुमुक्षुः- ऐसा यथार्थ निर्णय हो, उसे अनुभूति उसके पीछे आती ही है?

समाधानः- उसके पीछे आती ही है। फिर उसमें कितना काल लगे उसका नियम नहीं है, परन्तु अवश्य होती ही है। (क्योंकि) उसका कारण यथार्थ है।

मुमुक्षुः- स्वभावको पहचानकर निर्णय हो, वह यथार्थ निर्णय है। यह बात आपने बहुत सुन्दर कही।

समाधानः- स्वभावको पहचानकर निर्णय होता है कि यह ज्ञानस्वभाव है वही मैं हूँ, अन्य कुछ मैं नहीं हूँ। मति और श्रुत द्वारा वह निर्णय करता है। फिक्षर मति- श्रुतका उपयोग जो बाहर प्रवर्तता है, उसे अंतरमें लाये और लीनता हो तो निर्विकल्प होता है। परन्तु पहले उसका यथार्थ निर्णय होता है।

मुमुक्षुः- स्वभावका यथार्थ निर्णय होने-से पहले क्या होता होगा?

समाधानः- पहले तो उसे स्वभाव तरफ मुडनेकी रुचि होती है कि आत्माका स्वभाव कोई अपूर्व है। करने जैसा यही है। ये सब विभाव है। ऐसी रुचि अंतरमें रहती है कि मार्ग यही है। गुरुदेवने बताया वह एक ही मार्ग है, दूसरा नहीं है। ऐसा उसने स्थूल बुद्धि-से स्थूलता-से निर्णय किया होता है। परन्तु स्वभावको पहिचानकर अंतरमें-से निर्णय होता है, वह निर्णय अभी नहीं होता, परन्तु रुचि उस तरफकी होती है। मार्गकी रुचि होती है। उसके पहले भी कोई अपूर्व रुचि होती है। परन्तु वह रुचि होती है।

मुमुक्षुः- जबतक स्वभावकी पहिचान नहीं होती है तबतकका निर्णय सच्चा निर्णय ही नहीं है। स्वभावको पहिचानकर जबतक निर्णय होता, तबतक तो वह निर्णय निर्णय नहीं है।

समाधानः- वह निर्णय नहीं है। यथार्थ कारण प्रगट नहीं हुआ है। .. ऐसा है कि जिसे कोई अपूर्व रुचि हो तो अवश्य वह रुचि उस तरफ जाती