Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-

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है। अपूर्व रुचि हो तो। परन्तु उसे वर्तमानमें कोई संतुष्टता हो जाय, ऐसा वह निर्णय नहीं है। वर्तमान संतोष कब आवे? स्वभावको पहिचानकर निर्णय हो तो। बाकी रुचि होती है उसे। अंतरमें-से अपूर्व रुचि होती है कि मार्ग यही है। यह पुरुषार्थ करने पर ही छूटकारा है और यही करना है। ऐसी रुचि होती है।

मुमुक्षुः- ... ऐसा पुदगल और अमूर्त ऐसा जीव, उसका संयोग कैसा है?

समाधानः- अनादिका है। रूपी और अरूपी। आता है न? ग्रहे अरूपी रूपीने ए अचरजनी वात। आत्मा तो अरूपी है। ये तो रूपी है। परन्तु विभावपर्याय ऐसी होती है कि जिस कारण रूपी और अरूपीका सम्बन्ध होता है। ऐसा वस्तुका स्वभाव है। दोनों विरोधी स्वभाव होने पर भी अनादिका उसका सम्बन्ध है। विरूद्ध स्वभाव होने पर भी अनादि-से उसका सम्बन्ध चला आ रहा है। उसे विभाविक भावके कारण वह सम्बन्ध होता है।

मुमुक्षुः- उसे कम करनेके लिये कुछ...?

समाधानः- अनादिका वह है।

मुमुक्षुः- उसे कम कैसे करना? अभाव कैसे करना?

समाधानः- उसका उपाय यह है कि स्वयं अपने स्वभावको पहचानना, तो वह सम्बन्ध छूटे। अपने स्वभाव तरफ जाय, अरूपीको ग्रहण करे और रूपी तरफकी दृष्टि, रूपी तरफ जो एकत्वबुद्धि हो रही है उसे तोड दे और अरूपी जो चैतन्यस्वभाव है, उस ओर उसकी प्रीति, उसकी रुचि हो तब हो।

गुरुदेव तो बारंबार कहते थे कि तू भिन्न है, यह शरीर भिन्न है, ये विभाव तेरा स्वभाव नहीं है, तू अन्दर शाश्वत है। कोई भेदभाव भी तेरा मूल स्वरूप नहीं है। ऐसा बारंबार कहते थे। उनका उपदेश तो अन्दर जमावट हो जाय ऐसा उपदेश था, परन्तु परिणति तो स्वयंको पलटनी है, पुरुषार्थ स्वयंको करना है। स्वयं दिशा न बदले तो क्या हो? दिशा बाह्य दृष्टि वह स्वयं ही रखता है। अन्दर अपूर्वता लगे, रुचि करे तो भी परिणति तो स्वयंको पलटनी है। स्वयंको ही करना पडता है।

मुमुक्षुः- रुचि तो स्वयं करे, फिर भी परिणति पलटे नहीं तो रुचि...? समाधानः- उसे अपनी मन्दता है। रुचिकी मन्दता। उग्र रुचि हो तो परिणति पलटे बिना रहे नहीं। परन्तु रुचिकी मन्दता है। ऐसी रुचि हो कि बाहरमें उसे कहीं चैन पडे नहीं। ऐसी रुचि अन्दर उग्र हो तो स्वयं पुरुषार्थ किये बिना नहीं रहता।

प्रशममूर्ति भगवती मातनो जय हो! माताजीनी अमृत वाणीनो जय हो!