२५९
उष्णता बाहर-से नहीं आती है, अग्नि स्वयं ही उष्ण है। बर्फ स्वयं ही ठण्डा है। उसकी ठण्डक बाहर-से नहीं आती। वैसे जानना बाहर-से नहीं आता है, जाननेवाली वस्तु ही स्वयं है। उसमें बाहरके सब निमित्त हैं। इसे जाना, उसे जाना। जाननेवाली वस्तु स्वयं है।
समाधानः- ... आत्माको ज्ञानके साथ एकमेक सम्बन्ध है। ज्ञान बिनाका आत्मा नहीं है, आत्मा बिनाका ज्ञान नहीं है। तादात्म्य सम्बन्ध है। ऐसे अनन्त गुण हैं। ज्ञान, दर्शन, चारित्र, अस्तित्व, वस्तुत्व सबके साथ, द्रव्यको सबके साथ ऐसा तादात्म्य सम्बन्ध है। अनन्त गुण-से भरा हुआ, अनन्त गुणस्वरूप ही द्रव्य है। अनन्त गुण आत्मामें एकमेक हैं। जडमें भी वैसे अस्तित्व, वस्तुत्व इत्यादि जो जडके-पुदगलके वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श सब एकमेक तादात्म्य है। उसमें-से कुछ अलग नहीं पडता। एकमेेक है।
मुमुक्षुः- द्रव्यको और गुणोंको एकमेक सम्बन्ध है न? गुणको और गुणको भी ऐसा सम्बन्ध है? जैसे आपने कहा कि द्रव्य और गुणका तादात्म्यसिद्ध सम्बन्ध ङै। वैसे एक गुणको बाकीके अनन्त गुण जो हैं, उसके साथ तादात्म्यसिद्ध सम्बन्ध नहीं है?
समाधानः- उसका लक्षणभेद-से भेद है। सबका लक्षण भिन्न पडता है। बाकी वस्तुतः सब एक है। परन्तु उसके लक्षण अलग हैं। ज्ञानका लक्षण जानना, दर्शनका देखनेका, प्रतीत करना, चारित्रका लक्षण लीनताका, आनन्दका आनन्द स्वरूप, इसप्रकार सबके लक्षण भिन्न-भिन्न हैं। द्रव्य अपेक्षा-से सब एकमेक हैं। बाकी एकदूसरेके लक्षण अपेक्षा-से उसके भेद हैं। वस्तुभेद नहीं है, परन्तु लक्षण अपेक्षा-से भेद हैं। उसके लक्षण अलग, उसके कार्य अलग। ज्ञानका जाननेका कार्य, दर्शनका देखनेका, चारित्रका लीनताका, सबका कार्य कार्य अपेक्षा-से भिन्न-भिन्न है। वस्तु अपेक्षा-से एक है।
मुमुक्षुः- जब ज्ञानगुण ज्ञानगुणका काम करे, उस वक्त कर्ता गुण क्या करता है? (जैसे) ज्ञान करता है, वैसे कर्ता नामका गुण है, वह क्या करता होगा?
समाधानः- वह कर्ता स्वयं कार्य करता है। ज्ञान जाननेका कार्य करे तो कर्तागुण उस रूप परिणमन करके उसका कार्य लानेका काम करता है। ज्ञान जानता है तो उसमें परिणमन करके जो जाननेका कार्य होता है, वह जाननेका कार्य वह कर्तागुण कहलाता है। कार्य करता है। कर्तागुणमें.. कर्ता, क्रिया और कर्म। वह कर्ताकी परिणति है।
मुमुक्षुः- ये जो आपने सम्बन्ध कहा, वह निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध नही है? एकरूपता रूप सम्बन्ध है।
समाधानः- हाँ, एकरूप सम्बन्ध है, परन्तु उसमें लक्षणभेद है, कार्यभेद है। निमित्त- नैमित्तिक नहीं है। निमित्त-नैमित्तिक तो दो द्रव्यमें होता है, ये तो एक ही द्रव्य है।