Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-६)

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स्वयं अनादिअनन्त शाश्व द्रव्य है। उसमें क्षयोपशम भाव, सब अधूरी-पूर्ण पर्यायें, वह सब पर्याय अपनेमें (होती है)। अनादिअनन्त अपना स्वभाव नहीं है इसलिये उसे कोई अपेक्षा-से भिन्न कहनेमें आता है। परन्तु वह सर्वथा भिन्न ऐसे नहीं है।

मुमुक्षुः- द्रव्यमें तो राग और विभाव, अशुद्धि-से भिन्न, ...?

समाधानः- हाँ, अशुद्धि-से भिन्न। द्रव्यदृष्टि करे, अपने स्वभावको ग्रहण करे, वहाँ शाश्वत द्रव्यको ग्रहण करता है। इसलिये उसमें गुणभेद, पर्यायभेद सब उसमें-से निकल जाता है। परन्तु ज्ञानमें वह समझता है कि ये गुणका भेद, लक्षणभेद (है)। पर्याय जो प्रगट हो वह मेरे स्वभावकी पर्याय है। ऐसे ज्ञानमें ग्रहण करता है।ृदृष्टिमें उसके गुणभेद पर वह अटकता नहीं। दृष्टि एक शाश्वत द्रव्यको ग्रहण करता है। ग्रहण करे तो उसमें-से प्रगट हो। जो उसमें स्वभाव है, वह स्वभाव पर्याय प्रगट होती है।

मुमुक्षुः- ..

समाधानः- हाँ। मैं अशुद्धि-से भिन्न शुद्धात्मा हूँ। शाश्वत द्रव्य हूँ।

मुमुक्षुः- श्लोक आता है, "तत्प्रति प्रीति चित्तेन, वार्तापि हि श्रुता'। वह भी संस्कारकी ही बात है? रुचिपूर्वक "तत्प्रति प्रीति चित्तेन, वार्तापि हि श्रुता'। भगवान आत्माकी बात प्रीतिपूर्वक, रुचिपूर्वक सुने तो भावि निर्वाण भाजन। बात सुनी हो वह संस्कारकी बात है?

समाधानः- भावि निर्वाण भाजन। संस्कार नहीं, अंतरमें ऐसी रुचि यदि प्रगट की हो, अंतरमें ऐसी रुचि हो तो भावि (निर्वाण भाजन है)। तत्प्रति प्रीति चित्तेन। अंतरकी प्रीति, अंतरकी रूचिपूर्वक यदि वह ग्रहण की हो, उसमें संस्कार समा जाते हैं।

संस्कारका मतलब वह है कि स्वयंको जिस प्रकारकी रुचि है, उस रुचिकी अन्दर दृढता होनी, उस तरफ अपना झुकाव होना, जो रुचि है उस जातका, वह रुचिका संस्कार है। वह संस्कार अपेक्षा-से। रुचि, गहरी रुचि है उस रुचिके अन्दर एकदम जमावट हो जाना, वह संस्कार ही है।

मुमुक्षुः- वहाँ तो ऐसा कहा न, निश्चितम भावि निर्वाण भाजन। नियम-से वह भविष्यमें मुक्तिका भाजन होता है।

समाधानः- मुक्तिका भाजन होता है।

मुमुक्षुः- संस्कारमें भी उतना बल हो तो..

समाधानः- संस्कारमें रुचि साथमें आ जाती है। संस्कार अर्थात रुचि। अंतरकी गहरी रुचिपूर्वकके जो संस्कार हैं, संस्कार उसीका नाम है कि जो संस्कार अंतरमें ऐसी गहरी रुचिपूर्वकके हो कि जो संस्कार फिर जाये ही नहीं। संस्कार निरर्थक न जाय, ऐसे संस्कार। ऐसे रुचिपूर्वकका हो तो भावि निर्वाण भाजन है। यथार्थ कारणरूप होता है।