२६५
बँधे थे। जीवने अनन्त जन्म-मरण किये। उसमें कितने जातके कर्मबन्ध पडा होता है। किसीका कोई समयमें उदय आता है। अनेक जातके उदय आते हैं। अंतर आत्माकी रुचि रखनी वह एक अलग बात है और बाहरके उदय एक अलग बात है। दोनों वस्तु भिन्न-भिन्न हैं। अन्दर दुःख लगे, परन्तु समाधान किये बिना कोई उपाय नहीं है।
मुमुक्षुः- उनकी रुचि तो बहुत थी। कभी-कभी मेरे साथ बात करते थे। तब कहती थी, अचानक कुछ हो जायगा तो नटवर कैसे करेंगे? हमें कौन सुनायेगा? तो ऐसा कहते थे, ऐसी ढीली बातें क्यों करते हो? जागृति तो अपनी है न, ऐसी ढीली बातें नहीं करनी।
समाधानः- ऐसी बात करते थे?
मुमुक्षुः- हाँ, ऐसी बात करते थे। मैं कभी कहती थी..
समाधानः- स्वयंको अन्दर याद आ गया हो। अन्दर दबाव बढता है न, इसलिये याद आ जाय।
मुमुक्षुः- तत्त्व समझे, प्रमोदवाले थे।
समाधानः- कितने जन्म-मरण किये। कितनोंके साथ सम्बन्ध बाँधे, छोडे। मनुष्य जीवनमें आत्माका कर लेना। ऐसे प्रसंग देखकर वैराग्य उत्पन्न हो ऐसा है। कैसे प्रसंग बनते हैं। वैराग्य आये ऐसी बात है। सुनकर ऐसा हुआ, ये क्या अचानक हो गया?
मुमुक्षुः- मामाका पत्र आया..
समाधानः- अन्दर अपनी रुचि और संस्कार हो। आत्माकी पहचान कैसे हो, ऐसी गहरी रुचि हुयी हो, उतनी अंतरमें गहरी भावना हो, तो उसे भविष्यमें पुरुषार्थ उत्पन्न हुए बिना नहीं रहता। यदि अन्दरमें गहरी रुचि हो तो। शास्त्रमें आता है कि तत्प्रति प्रीति चित्तेन वार्तापि ही श्रुताः। भावि निर्वाण भाजनम, ऐसा आता है। प्रीति- से यदि इस तत्त्वकी बात सुनता है तो भविष्यमें निर्वाणका भाजन है। प्रीति-से बात सुनता है उसका मतलब उसे अन्दर अपूर्वता लगे। गुरुदेव ऐसी बात बतायी, उसे अपूर्व रीते-से सुनकर जिसने ग्रहण की हो, उसे अंतरमें वर्तमानमें पुरुषार्थ न कर सके तो भी भविष्यमें उसका पुरुषार्थ चालू होता है। जिसने अंतरमें ऐसे संस्कार डाले हैं कि मुझे एक आत्मा ही चाहिये, दूसरा कुछ नहीं चाहिये। एक आत्मा तरफकी ही जिसे रुचि है। सच्चे देव-गुरु-शास्त्र और अन्दर आत्मा, उसकी जिसे रुचि है, उसे भविष्यमें पुरुषार्थ उत्पन्न हुए बिना नहीं रहता। सबको रुचि है। आयुष्यके आगे किसीका कुछ नहीं चलता। समाधान किये बिना कोई उपाय नहीं है। देव-गुरु-शास्त्रको हृदयमें रखकर आत्मा ज्ञायककी पहचान कैसे हो, वह करने जैसा है। चक्रवर्ती और राजा भी संसार छोडकर आत्माका शरण ग्रहण करते हैं। आत्माका शरण ही सच्चा है।