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अंतरमें कैसे साधना करनी, आत्माको पहचानना, अन्दर-से भेदज्ञान करना, वह सब अपने हाथकी बात है। बाहरका कुछ अपने (हाथमें नहीं है)। उनको जो रुचि थी वह उनके साथ लेकर गये। बाकी आयुष्य कैसे पूर्ण हो, वह तो किसीके हाथकी बात नहीं है। आपके घरमें तो सबको पहले-से संस्कार है और उनको भी संस्कार थे। वे तो संस्कार लेकर गये। आयुष्य उसी प्रकार पूरा होनेवाला था, वैसे ही होता है।
मुमुक्षुः- ऐसी कोई आशातना की हो या दूसरा कुछ हुआ हो, इसलिये आखिरमें ऐसा होता है?
समाधानः- नहीं, ऐसा कुछ नहीं है। वह तो पूर्वमें आयुष्यका बन्ध वैसे पडा होता है। आयुष्य अमुक प्रकार-से, अमुक जातका बँधा हो उस प्रकार-से आयुष्य पूरा होता है। कोई ऐेसे परिणाम-से आयुष्यका बँध पडा हो। छोटा आयुष्य, लंबा आयुष्य वह सब आयुष्यका बँध है, पूर्वका है। वर्तमानका कुछ नहीं होता।
ऐसा है कि कितनोंको सम्यग्दर्शन होता है। आयुष्यका बन्ध जुगलियाका आयुष्यका बन्ध पड गया हो तो जुगलियामें जाता है। इसलिये आयुष्यका बन्ध है उसको बदला नहीं जाता। ऐसा कहते हैं कि आयुष्यका बन्ध ऐसा पडा? उनको इतनी रुचि थी तो भी इस तरह देह छूटा? कहा, उसमें कोई वर्तमानका कारण नहीं है। वह तो पूर्वमें आयुष्यका बन्ध उस प्रकारका पडा होता है।
मुमुक्षुः- ....रास्तेमें हो गया। कोई संयोग नहीं मिले।
मुमुक्षुः- कोई सुनाये तो ही भाव रहता है?
समाधानः- कोई सुनाये तो ही भाव रह सके ऐसा नहीं है, स्वयं खुद रख सकता है। अन्दर याद आ जाय। जिसे रुचि हो उसे अंतरमें याद ही आ जाता है, वेदना आये इसलिये।
मुमुक्षुः- इतना प्रेम था...
समाधानः- सबको देखा था न, इसलिये अपनेको ऐसा लगे कि ये चुनिभाईके पुत्र है। ऐसा हो न। वहाँ प्राणभाईके घर आते-जाते थे, इसलिये देखा था। वहाँ जामनगर जाते थे तब इन सबको छोटे थे उस वक्त देखा था। सबको रुचि। चुनिभाईको उतनी रुचि थी, इसलिये सब लडकोंको भी (रुचि हुयी)।
मुमुक्षुः- बुद्धिवान थे। बराबर परख करे।
समाधानः- जन्म-से यह रुचि, क्योंकि चुनिभाईको रुचि थी इसलिये घरमें सबको वही रुचि।
मुमुक्षुः- ...
समाधानः- पूर्वका हो उस अनुसार। पूर्व उदयका कारण है। ऐसे ही कोई संयोग