Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-६)

१६४ वैसा करो। फिर भी उसे ऐसी एकत्वबुद्धि नहीं होती कि ऐसा करने-से ऐसा ही होगा। ऐसी उसे एकत्वबुद्धि नहीं है। उससे भिन्न परिणमन (वर्तता है)। वह समझता है कि जैसा होना होगा वैसा ही होगा। ऐसा सहज वर्तता है। फिर भी वह कहे ऐसा कि, ऐसा करो। विकल्प भी ऐसा आये कि यह करने जैसा है। ऐसा विकल्प आये। परन्तु वह जैसा बनना होता है, वैसा ही बनता है। उसे सहज वर्तता है।

मुमुक्षुः- कोई भी परद्रव्यकी जो क्रिया हो रही है, वह तो उससे ही हो रही है। रागका कोई कार्य नहीं है, ऐसा स्पष्टपने उसके ख्यालमें रहता है।

समाधानः- स्पष्टपने ख्याल रहता है। रागका मात्र निमित्त बनता है। उसका मेल हो जाय तो हो जाय। मेल न खाय तो वह स्वतंत्र है। जो बननेवाला होता है वही बनता है। ऐसी एकत्वबुद्धि उसे होती ही नहीं कि ऐसा राग हुआ तो ऐसा होना ही चाहिये। उसे बराबर ख्याल है कि जो बननेवाला है वैसे ही बनता है। धारणा अनुसार कुछ होता ही नहीं। प्रत्येक द्रव्य स्वतंत्र परिणमता है।

बाहरके सब अनेक जातके प्रसंग, वह कोई कार्य रागके अधीन हो ऐसा नहीं है। शरीरका परिणमन भी अपने अधीन नहीं है। कोई रागके अधीन नहीं है। इसका ऐसा, इसका ऐसा करो, वह भी हाथकी बात नहीं है। वह भी कोई दवाईसे मिटे या उससे मिटे वह कोई हाथकी बात नहीं है। स्वतंत्र निःशंकपने उसे प्रतीत वर्तती ही रहती है। उसे याद नहीं करना पडता। उसे एकत्वबुद्धि ऐसी तन्मयता नहीं होती कि ऐसा करने-से ऐसा होगा ही। ऐसी एकत्वबुद्धि ही नहीं होती, उससे न्यारा ही रहता है।

समाधानः- .. दो द्रव्यकी स्वतंत्रताकी प्रतीति साथमें हो तो ही मैं ज्ञायक हूँ, ऐसी उसे दृष्टि (रहे), तो ही उसका अभ्यास हो सकता है। दो द्रव्यकी स्वतंत्रता जो स्वीकार नहीं करता, उसे ज्ञायक हूँ, ऐसा कब आये? कि मैं परसे भिन्न हूँ। ये परपदार्थ है उससे मैं भिन्न मैं एक चैतन्यद्रव्य स्वतंत्र ज्ञायक हूँ। विभाव स्वभाव भी मेरा नहीं है और मैं एक ज्ञायक हूँ, ऐसा स्वयंको भिन्न कब भासित हो? कि परद्रव्य-से भिन्न स्वयंको प्रतीति हो और मैं स्वतंत्र द्रव्य हूँ और ये परद्रव्य स्वतंत्र है, दोनोंकी स्वतंत्रता लगे तो ही ज्ञायक द्रव्यकी प्रतीति हो। इन दोनोंका सम्बन्ध है। भेदज्ञान जिसे हो, मैं ज्ञायक हूँ, ऐसे बारंबार अपने निज अस्तित्वको ग्रहण करे, उसे दो द्रव्यकी स्वतंत्रताका निर्णय हुए बिना रहता ही नहीं। उसे सम्बन्ध है।

मुमुक्षुः- उस सम्बन्धित अनेक प्रकारके विकल्प आते हैं। मैं मेरी बात आपको करता हूँ। संस्थाका ... मुझे ऐसा होता है कि दो द्रव्यकी स्वतंत्रता है। जो होनेवाला है वह होगा। अथवा प्रत्येक द्रव्य स्वतंत्ररूप-से परिणमते हैं। रागके कारण कोई फेरफार