Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-

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होनेवाला नहीं है। ऐसी दृढता नहीं रहती है। ऐसा लगे कि दृढता नहीं रहती है। तो फिर जो अपने ज्ञायकका अभ्यास करते हैं, इतना तो विकल्पात्मक ज्ञानमें निर्णय होना चाहिये कि राग आता है, फिर भी परिणमन तो जो होनेवाला है वही होगा।

समाधानः- उसे ऐसा निर्णय रहना चाहिये, जो होनेवाला है वही होगा। परन्तु रागके कारण इसका ऐसा हो तो ठीक, ऐसा हो तो ठीक, ऐसी उसे भावना रहे। फिर उसके राग अनुसार न हो तो उसका उसे आग्रह नहीं रहता है। फिर उसे समाधान हो जाय कि जैसे होना होगा वैसा होगा। रागके कारण ऐसा हो तो ठीक, ऐसा करुँ तो ठीक, ऐसा हो, ऐसे सब विकल्प आये। तो भी यदि उसकी इच्छा अनुसार बने तो वह समझे कि ऐसा बननेवाला था और न बने तो भी वही बननेवाला था। इसलिये उसे समाधान हो जाता है कि रागके कारण कुछ होता नहीं है। परन्तु राग आये बिना नहीं रहता। वह रागको समझता है कि ये राग है। बाकी प्रत्येक द्रव्य तो स्वतंत्र है। जो बननेवाला होता है वही बनता है। रागके कारण, उसे सब विचारणा रागके कारण चलती है। उसे जो देव-गुरु-शास्त्रके प्रति जो राग है, उस रागके कारण है।

मुमुक्षुः- संयोगाधीन दृष्टि है इसलिये संयोगसे देखते हैं कि ऐसा किया तो ऐसा हुआ। ऐसा नहीं होता है तो ऐसा नहीं हुआ। विकल्पात्मकमें भी ऐसा ... हो जाता है।

समाधानः- उसे निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध होता है। रागका और बाह्य कायाका निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्धका मेल बैठ जाय तो ऐसा होता है कि मैंने ऐसे भाव किये, ऐसा किया इसलये ऐसा हुआ। परन्तु निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्धके कारण ऐसा मेल हो जाता है। परन्तु वह मैल ऐसे निश्चयरूप नहीं होता है। क्योंकि प्रत्येक द्रव्य स्वतंत्र हैं। कोई बार फेरफार होता है। परन्तु उसके निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्धके कारण ऐसा होता है कि, मैंने ऐसा किया तो ऐसा हुआ, ऐसा न करुँ तो ऐसा होता। उसका निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्धके कारण ऐसा हो इसलिये उसे ऐसा लगता है कि ऐसा करुँ तो ऐसा होगा, ऐसा करुँ तो ऐसा होगा। उसका सम्बन्ध ऐसा है।

बाकी जिसे प्रतीत है उसे बराबर ख्यालमें है कि मैं ज्ञायक भिन्न हूँ। प्रत्येक द्रव्य स्वतंत्र स्वतः परिणमन करते हैं। मैं उसका परिणमन करवा नहीं सकता। स्वतंत्र द्रव्य है। तो भी ऐसे निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्धके कारण ऐसा मेल दिखता है। परन्तु वह स्वयं कर नहीं सकता।

जिसे यथार्थ प्रतीति हो वह बराबर समझता है कि उसके मेलके कारण ऐसा होता है, रागके कारण नहीं होता है। उसका निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्धके मेलके कारण ऐसा दिखे कि ऐसा हो रहा है। ऐसा अनुकूल उदय हो तो वैसा ही होता है। ऐसा सम्बन्ध