Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-६)

१७८ उसमें रुकनेका कोई प्रयोजन नहीं है। भेदज्ञान कर, ऐसा गुरुदेवका कहनेका है। आचायाको यह कहना है। सब विभाव तेरा स्वभाव नहीं है, तू उससे भिन्न है। विभाव निमित्तकी अपेक्षा-से होता है। निमित्त-की अपेक्षा-से निमित्तका है। तेरे पुरुषार्थकी मन्दता-से तेरेमें होता है। एक ही (बात है कि) तू उससे भिन्न पड जा। विभाव पुरुषार्थकी मन्दता- से होता है और तेरा स्वभाव नहीं है। स्वभावभेद-से उसका भेद है। इसलिये उसका भेदज्ञान कर, ऐसा कहना है।

मुमुक्षुः- किसी भी प्रकार-से आत्माकी मुख्यता (रखनी)।

समाधानः- आत्माकी मुख्यता रखनी। भेदज्ञान करनेका प्रयोजन है।

मुमुक्षुः- या तो तेरा स्वभाव नहीं है ऐसे तू ले अथवा निमित्तमें डाल दे। प्रयोजनकी सिद्धि..

समाधानः- हाँ, प्रयोजनकी सिद्धि वह है। तू भिन्न है और जो विभाव होता है उसे निमित्तमें डाल दे। अथवा तेरे पुरुषार्थकी मन्दता-से तेरेमें होता है। उस अपेक्षा- से चेतनमें होता है। इसलिये तू उसे पुरुषार्थ करके टाल। तू भिन्न है, भेदज्ञान करके जो अस्थिरता रहे उसे भी तुझे तोडनी है। इसलिये पुरुषार्थ करनेका, भेदज्ञान करनेका प्रयोजन है।

मुमुक्षुः- प्रयोजनको मुख्य रखना।

समाधानः- प्रयोजनको मुख्य रखना है। कोई अपेक्षा-से निमित्तकी मुख्यता-से और जडकी अपेक्षा-से जडके कहनेमें आता है। चेतनकी अपेक्षा-से चेतनका कहनेमें आता है। अपने पुरुषार्थकी मन्दता-से होता है। चेतनकी अपेक्षा-से चेतनमें होता है (ऐसा कहनेमें) निमित्तकी गौणता होती है और जड तरफ, निमित्त तरफकी बात आये उसमें गौणता होती है। दोनोंमें निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध है ही। इसलिये तू उससे भिन्न पड। भेदज्ञान करनेका प्रयोजन है।

मुमुक्षुः- जूठे वादविवादमें अटकना नहीं, प्रयोजनको..

समाधानः- जूठे वादविवादमें अटकना नहीं, प्रयोजनको सिद्ध करना। अध्यात्म दृष्टिमें एक भेदज्ञान करनेका प्रयोजन है। आचार्यको यह कहना है कि तू भेदज्ञान कर, गुरुदेवका ऐसा कहना है, तू भेदज्ञान कर। एकान्त जडका हो तो फिर पुरुषार्थ करना कहाँ रहता है? परन्तु तेरा स्वभाव नहीं है, इसलिये जड तरफ जाता है। और जड तरफ जाय, परन्तु तेरेमें नहीं होते हो तो तुझे कुछ करना नहीं रहता। इसलिये उस अपेक्षा-से तेरेमें होता है। दोनों अपेक्षाका मेल करके निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध कैसे है (यह समझ लेना)।

कोई अपेक्षा-से किसीकी मुख्यता और किसीकी गौणता होती है। प्रयोजन भेदज्ञान