Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi). Track: 268.

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 1757 of 1906

 

१७७
ट्रेक-२६८ (audio) (View topics)

मुमुक्षुः- राग और ज्ञानको भिन्न करके, एक ज्ञायक है वही मैं हूँ, ऐसा देखना?

समाधानः- रागको भिन्न करता है वहाँ ज्ञान भिन्न पड ही जाता है। इसलिये मैं ज्ञायक हूँ, ऐसा ग्रहण करे तो राग भिन्न पड जाता है। वास्तविक रूप-से दोनों साथमें ही है। अपना अस्तित्व ग्रहण करे कि मैं ज्ञान हूँ, इसलिये राग भिन्न पड ही जाता है।

मुमुक्षुः- मैं ज्ञान हूँ अर्थात मैं ज्ञायक हूँ?

समाधानः- मैं ज्ञायक हूँ। ज्ञान अर्थात मात्र जानपना इतना ही नहीं, परन्तु मैं स्वयं ज्ञायक हूँ। मैं ज्ञायक हूँ, सर्व प्रकार-से ज्ञायक ही हूँ।

समाधानः- ... आत्माको पहचानना। विभाव भिन्न और आत्मा भिन्न, प्रयोजन तो वह सिद्ध करनेका है। अध्यात्म पद्धतिमें भेदज्ञान करना है। भेदज्ञान करनेका प्रयोजन है। उस प्रयोजनको देखना। प्रयोजन वह है। उसमें रुकना नहीं कि इसका यह अर्थ है या वह अर्थ है, भाव-आशय ग्रहण कर लेना। जहाँ निमित्त-नैमित्तिक सम्बन्ध हो, परकी मुख्यता हो उसमें विभावकी गौणता आ ही जाती है। विभावकी बात हो उसमें निमित्तकी अपेक्षा आ जाती है। इसलिये जो भेदज्ञान, विभाव-से भेदज्ञान करना है, वह एक ही प्रयोजन है। उसमें जड-चैतन्यको गौण करके विभाव-से भेदज्ञान करना, एक ही बात है। उस प्रकार-से विचार करना है।

आचार्य भी ऐसा कहते हैं, ऐसा कहकर यह कहना चाहते हैं कि तू भेदज्ञान कर। गुरुदेव भी ऐसा कहते हैं कि तू भेदज्ञान कर। विभाव तेरा स्वभाव नहीं है। निमित्तकी अपेक्षा-से निमित्तका है, निमित्तकी अपेक्षा-से निमित्तका है और तेरे पुरुषार्थकी मन्दता-से होता है इसलिये तेरा है। उसमें भी निमित्तकी अपेक्षा है। और निमित्तकी मुख्यता-से बात करके जडमें डाल दे तो वह एकान्त जड है, उसमें तेरी विभावकी अपेक्षा साथमें आ जाती है। और तुझ-से होता है ऐसा कहे, उसमें निमित्तकी अपेक्षा आती है। और तुझ-से होता है ऐसा कहनेमें निमित्तकी अपेक्षा आती है। निमित्त- नैमित्तिक सम्बन्ध क्या है उसका विचार करके भेदज्ञान करनेका प्रयोजन है।

शास्त्रमें अध्यात्म दृष्टि-से प्रयोजन है, उस प्रयोजनको सिद्ध करना है। बाहर नहीं।