१८० हैं? कि ज्ञानको प्रसिद्ध करते हैं। वह ज्ञान देहप्रमाण आत्मा है तो वहाँ परिणमन हो रहा है। परन्तु जिस प्रकार-से स्पष्टपने उसके स्वरूप-से ख्यालमें आना चाहिये कि जो ख्यालमें आने-से सीधा ज्ञायक भावभासनरूप हो, ऐसा नहीं होता है।
समाधानः- उसका प्रयत्न करना। युक्ति-से, विचार-से नक्की करे लेकिन उसमें जो अस्तित्व है, वह कैसे ग्रहण हो, उसका विचार, प्रयत्न, मंथन सब उसीका, उसकी लगनी, महिमा सब वही करना है। बाहर-से कुछ नहीं होता है। अंतरमें अंतर दृष्टि करनी। गुरुदेवने बहुत कहा है। अंतर-से ही वह ग्रहण कैसे हो? उसे ही ग्रहण करना है। सबको गुजराती भाषामें ख्याल आता है? गुरुदेवने तो चारों ओर-से प्रचार किया है।
मुमुक्षुः- पर्यायें प्रगट हुयी हैं, उसके साथ ततपना है या अततपना?
समाधानः- अपनी पर्यायोंके साथ? कोई अपेक्षा-से तत है, कोई अपेक्षा-से अतत है। अपनी पर्यायके साथ तन्मय है और पर्याय तो क्षणिक है। इसलिये उसे अतत भी कहनेमें आता है। पर्याय पलटती है। और पर्याय तो द्रव्यके आश्रय-से होती है। इसलिये पर्याय उसके साथ ततरूप है और कोई अपेक्षा-से अतत भी है।
मुमुक्षुः- ज्ञान, दर्शन, चारित्रकी परिणति उसका स्वभाव होने-से उसे सहज कहा।
समाधानः- वह सहज है। उसका स्वभाव है।
मुमुक्षुः- और पुरुषार्थपूर्वक प्राप्त होता है, इसलिये पुरुषार्थ-से प्राप्त होता है ऐसा कहनेमें आता है।
समाधानः- हाँ, पुरुषार्थ-से प्रगट होता है। जगतमें जो कुछ वस्तुके स्वभावमें नहीं है ऐसा कुछ उत्पन्न नहीं होता है। उसके स्वभावमें है वह उत्पन्न होता है। परन्तु वह पुरुषार्थ-से प्रगट होता है। परिणति जो अनादि-से विभावमें है, वह अपनेआप स्वभावमें आ जाती है, पुुरुषार्थके बिना, ऐसा नहीं है। पुरुषार्थ-से अपने स्वभाव तरफ आती है। परन्तु जो स्वभाव है पलटनेका और उसका स्वभाव है ज्ञान, दर्शन, चारित्र आदि उसके स्वभावमें-से प्रगट होता है, इसलिये सहज है।
ऐसा हो कि जैसे होना होगा वैसे होगा, तो ऐसे प्रगट नहीं है। करनेवालेकी दृष्टि, जिसे स्वभाव प्रगट करना है, उसके ख्यालमें तो (ऐसा होता है कि) मैं पुरुषार्थ करके पलटा करुँ। मैं ज्ञायक तरफ दृष्टि करुँ, उसकी भावना वैसी होता है। करनेवालेको ऐसा नहीं होता कि जैसे होना होगा वैसे होगा। जैसे परिणति होनेवाली होगी वैसे होगी, ऐसा करनेवालेके लक्ष्यमें नहीं होता।
ज्ञायकको ग्रहण करके परिणति अपनी तरफ आती है तो ज्ञायकमें जो स्वभाव है वह उसे प्रगट होता है। वह सहज है। उसका स्वभाव प्रगट होता है, स्वभावकी परिणति प्रगट होती है।