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मुमुक्षुः- सहजका अर्थ ऐसा नहीं है कि पुरुषार्थ किये बिना प्राप्त हो जाय।
समाधानः- हाँ, पुरुषार्थ किये बिना प्राप्त हो, ऐसा नहीं है।
मुमुक्षुः- पुरुषार्थ करे तो सहज है।
समाधानः- पुरुषार्थ करे तो सहज होता है।
मुमुक्षुः- सम्यग्दर्शन पहले पात्रता प्रगट करनेके लिये भी उसे अपेक्षित पुरुषार्थ करना पडता है?
समाधानः- हाँ, पुरुषार्थ करना पडता है। भावना करे, अभ्यास करे। उसे ऐसी भावना हुए बिना रहती ही नहीं। जिसे अपनी लगनी लगती है, विभावमें जिसे सुख और शान्ति नहीं है, उसे अपनी ओर पुरुषार्थ आये बिना रहता ही नहीं। वह आता है। भले यथार्थ बादमें हो, परन्तु भावनामें उसे वह कारण प्रगट करनेके लिये उसे भावना आती ही है।
मुमुक्षुः- माताजी! पात्रतामें अशुभको टालकर शुभके परिणाम उसे होते हैं। उसमें कर्तृत्वबुद्धि नहीं आ जाती?
समाधानः- कर्तृत्वबुद्धि तो मैं परपदार्थका कर्ता हूँ। परद्रव्यका मैं कर्ता हूँ, ऐसा आये तो कर्तृत्वबुद्धि होती है। वास्तविक रीत-से कर्तृत्वबुद्धि कब छूटती है? जब ज्ञायकता प्रगट हो, तब उसकी कर्ताबुद्धि छूटती है। तब उसकी कर्तृत्वकी परिणति वास्तविक रूप-से छूटती है। जबतक ज्ञायकता-साक्षी भाव अंतरमें-से सहज जो ज्ञाताकी-साक्षीकी दशा है, वह दशा प्रगट नहीं हुयी है तबतक उसे कर्तृत्वकी परिणति खडी है। परन्तु वह बुद्धिमें नक्की करे कि मैं परपदार्थका तो कर नहीं सकता। पर पदार्थके द्रव्य- गुण-पर्यायको मैं कर नहीं सकता।
अब जो विभाव होता है, विभावकी रागकी परिणतिमें मैं मेरे पुरुषार्थकी मन्दता- से जुडता हूँ। उस जातके पुरुषार्थको मैं बदलूँ, उस प्रकारकी कर्तृत्वबुद्धि आती है। परन्तु वास्तविकरूप-से कर्ताबुद्धि अभी छूटी नहीं है। जिसे अंतरमें-से छूटे उसे परद्रव्यमें- से छूटे, विभावमें-से भी छूटे, सब छूट जाता है। वास्तविक छूटी नहीं है, परन्तु स्थूलबुद्धि- से मैं परपदार्थको कर नहीं सकता, जैसे होना होता है वैसे होता है। अन्दर अपने परिणामको पलटे उसमें तो पुरुषार्थका कर्तृत्व आये बिना वह पुरुषार्थ पलटता नहीं।
लेकिन ज्ञायकदशामें राग मेरा स्वभाव नहीं है, इसलिये मैं रागको कर नहीं सकता। ऐसे उसकी कर्ताबुद्धि ज्ञायक दशामें छूट जाती है। मैं उसकी उत्पत्ति कर नहीं सकता हूँ, परन्तु मेरे पुरुषार्थकी मन्दता-से वह होता है। उसकी कर्ताबुद्धि वास्तविक रूप- से ज्ञातृत्वमें छूटती है। ज्ञायकदशा नहीं है तबतक कर्ताबुद्धि खडी ही है। जहाँ भी, शुभ या अशुभमें जहाँ उसकी परिणति जाय, वहाँ हर जगह उसकी कर्ताबुद्धि खडी