१८६ है। अरूपी आत्माको पकडना। उपयोग सूक्ष्म करे तो पकडमें आता है। ये विकल्प, जो विभावभाव है, उससे भी आत्मा तो सूक्ष्म है। ज्ञानस्वभाव-ज्ञायकस्वभाव, उस ज्ञानमें पूरा ज्ञायक समाया है। उस ज्ञायकको स्वयं सूक्ष्म उपयोग करे तो पकडमें आता है। सूक्ष्मताके बिना पकडमें (नहीं आता)। स्थूलता-से और रागमिश्रित भावों-से पकडमें नहीं आता। परन्तु उससे भिन्न होकर पकडे तो पकडमें आये ऐसा है।
मुमुक्षुः- भिन्न पडकर माने क्या?
समाधानः- भिन्न पडकर अर्थात अन्दर ज्ञायकको ग्रहण करके विकल्पके भावों- से भिन्न पडे तो वास्तविक पकडमें आता है। पहले शुरूआतमें तो उसे विकल्प साथमें होता है। विकल्प-से भिन्न पडे तो अंतरमें निर्विकल्प दशा हो जाय, वह तो वास्तविक पकडमें आता है। शुरूआतमें, प्रथम भूमिकामें तो विकल्प साथमें होता है। वास्तविक पकडमें आये तो विकल्प-से भिन्न पडता है। परन्तु पहले शुरूआतमें विकल्पको गौण करके और आत्माको अधिक रखकर यदि पकडे तो पकडमें आता है। विकल्प-से बिलकूल भिन्न तो निर्विकल्प दशा हो तो वह विकल्प-से भिन्न पडता है। विकल्पको गौण करके और अंशतः आत्माको मुख्य करके पकडे तो पकडमें आता है।
भेदज्ञानकी धारा हो तो उसमें विकल्प-से भिन्न पडे। भिन्न पडे अर्थात विकल्प है ऐसा उसे ख्याल रहता है कि परन्तु परिणतिको भिन्न करता है। वह सब तो वास्तविक है। शुरूआतकी भूमिकामें विकल्प साथमें होता है, परन्तु विकल्पको गौण करके आत्माको मुख्य रखकर, यह मैं ज्ञायक हूँ और यह विकल्प है, इस तरह पकड सकता है।
मुमुक्षुः- वचनामृतमें आता है कि आत्माको मुख्य रखना। परन्तु कायाकी गिनती करने जैसा नहीं है। फिर भी परिणामोंमें कार्यकी गिनती हो जाती हो तो वहाँ मुख्य कारण क्या बनता होगा? और उससे बचने हेतु प्रयोगात्मक पद्धति-से क्या करना?
समाधानः- कायाकी गिनती नहीं करना, आत्माको मुख्य रखना। कायाकी गिनती तो उसे बाहरमें उस जातका उसे राग है इसलिये गिनती होती है। उसके लिये एक आत्मा तरफकी ही लगन लगाये, दूसरेकी महिमा टूट जाय कि दूसरे कायाकी क्या महिमा है? आत्मा ही मुझे सर्वस्व है और आत्मामें ही सर्वस्व है। तो आत्माको मुख्य रखे, आत्माकी महिमा आये तो वह सब उसे गौण हो जाता है। उसे किसी भी प्रकारकी गिनती नहीं होती। मेरा आत्मा ही सर्वस्व है। आत्माकी ही महिमा, आत्माकी लगन, आत्मा ओर ही उसे सर्वस्वता लगे और दूसरेका रस टूट जाय। दूसरेकी महिमा टूट जाती है।
मुमुक्षुः- इतना पढता हूँ, इतनी भक्ति करता हूँ, मैं इतने घण्टे ऐसा करता हूँ। इतना-इतना मैं करता हूँ, ऐसा गिनती (होती है)।