Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-

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नक्की करे कि ये ज्ञायकता है वह अनन्त ज्ञायकता है। वह ज्ञायकता, इतना जाना इसलिये ज्ञायक है, ऐसा नहीं। स्वतःसिद्ध ज्ञायक जिसमें नहीं जानना ऐसा आता ही नहीं, ऐसा अनन्त-अनन्त ज्ञायकता-से भरा जो स्वभाव और जो सुखको बाहरमें इच्छता है, वह सुखका स्वभाव, सुखका समुद्र स्वयं ही है। ऐसा अनन्त स्वभाववाला, अनन्त आनन्द जिसमें भरा है, अनन्त ज्ञान जिसमें भरा है और अनन्त स्वभाव-से जो भरा है ऐसा मैं चैतन्य हूँ। उस चैतन्यकी महिमा विचार करके लावे कि वह वस्तु अनन्त धर्मात्मक और महिमावंत कोई अनुपम है। उसका विचार करके महिमा लाये। शास्त्रोंमें आता है, आचार्यदेव कहते हैं, गुरुदेव कहते हैैं कि ये वस्तु कोई अनुपम महिमावंत है। जो अनुभवी हैं, गुरुदेव कहते हैं, मुनि कहते हैं कि आत्मा कोई अनुपम है। तो स्वयं विचार करके नक्की करे।

स्वयंको तो एक ज्ञानस्वभाव ही दिखता है, दूसरा कुछ दिखता नहीं है। तो स्वयं विचार करके अन्दर-से स्वतःसिद्ध अनन्त धर्मात्मक है, अनन्त अचिंत्य महिमा-से भरी है, उसका विचार करके नक्की करे तो स्वयंको प्रतीत आवे। देव-गुरु-शास्त्र जो कहते हैं कि कोई अपूर्व वस्तु है, तेरी वस्तु अपूर्व है, तू उसमें जा। तो वह अपूर्व कैसे है? उसका विचार करके स्वयं प्रतीत करे तो हो। उसका लक्षण तो अमुक दिखता है, परन्तु स्वयंसे नक्की करना पडता है।

बाहरमें सब जगह आकुलता है। तो निराकुलता और आनन्द-से भरा एक आत्मा है। ऐसा गुरुदेव कहते हैं, आचार्य कहते हैं, सब कहते हैं। अंतरमें है वह किस प्रकार- से है, वह स्वयं विचार करके, स्वभावको पहिचानकर नक्की करे कि उसीमें सब है। तो उसे महिमा आये।

मुमुक्षुः- अनन्त गुणात्मक है वह सब विचार द्वारा नक्की हो सकता है?

समाधानः- विचार द्वारा नक्की हो सकता है। उसे दिखता नहीं है, परन्तु नक्की हो सकता है। जो अनादिअनन्त वस्तु हो वह मापवाली नहीं हो सकती। वह अनन्त अगाध स्वभाव-से भरी है। विचार-से नक्की कर सकता है। उसकी महिमा ला सकता है।

मुमुक्षुः- मुमुक्षुके नेत्र सत्पुरषको पहिचान लेता है। वहाँ मुमुक्षुके नेत्रका अर्थ सत्पुरुषकी वाणीमें आ रही आत्माकी सहज महिमा और अन्यकी उसी शब्दोंमें आ रही कृत्रिम महिमा, उसके बीचका भेद करता है, ऐसा कह सकते हैं?

समाधानः- उसके नेत्र ऐसे ही हो गये हो। पात्रता अंतरमें-से उसे सत्य ही चाहिये। सत्पुरुषकी वाणीमें कोई अपूर्वता रही है, कोई आत्माका स्वरूप बता रहे हैं। दूसरेकी वाणी और उनकी वाणीका भेद कर सकता है। उसका हृदय ही ऐसा हो गया है कि मुझे जो चाहिये, कोई अपूर्व वस्तु, ये कुछ अपूर्व बता रहे हैं। वह भेद