Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-६)

१९० कर सकता है। सच्चा मुमुक्षु हो वह भेद कर सकता है। सच्चा मुमुक्षु हो वह भेद कर सकता है। उनके परिचय-से, उनकी वाणी-से भेद कर सकता है। परीक्षा करके भेद कर सकता है।

मुमुक्षुः- देव-गुरु-शास्त्रकी महिमाके वक्त आत्माकी खटक रखनेका आप फरमाते हो, तो वह दोनों एक परिणाममें प्रयोगात्मक रूप-से कैसे करना?

समाधानः- देव-गुरु-शास्त्रकी महिमाके समय आत्माकी (खटक होनी चाहिये)। उस महिमाका हेतु क्या है? देव-गुरु-शास्त्र, जिनेन्द्र देवने आत्मा प्रगट किया है, वे केवलज्ञान स्वरूप, पूर्णरूप-से विराजमान हो गये, गुरुदेव साधना करते हैं, शास्त्रोंमें भी वह आता है, इसलिये उसकी महिमाका हेतु क्या है कि उन्होंने जो चैतन्यका स्वरूप प्रगट किया, इसलिये उनकी महिमा आती है। उसका अर्थ वह है कि उन्होंने वह स्वरूप प्रगट किया इसलिये उनकी महिमा आती है। तो उस स्वरूपकी स्वयंको रुचि है और वह रुचि वैसी होनी चाहिये कि वह स्वरूप मुझे प्रगट हो।

अतः रूढिगतरूप-से वह अच्छा है ऐसे नहीं। उन्होंने जो प्रगट किया वह आदरने योग्य कोई अनुपम वस्तु प्रगट की है। और वह वस्तु मुझे चाहिये। इसलिये उसमें रुचि और देव-गुरु-शास्त्रकी महिमा दोनों साथ होते हैं। जिसे महिमा, ऐसी समझपूर्वक महिमा आये उसे आत्माकी रुचि साथमें होती ही है। ओघे ओघे करता हो (ऐसा नहीं)। समझपूर्वक जिसे महिमा आती है उसे रुचि साथमें होती ही है कि यह स्वरूप मुझे चाहिये। ये विभाव अच्छा नहीं है, परन्तु स्वभाव अच्छा है। अतः जो देव- गुरु-शास्त्रने प्रगट किया है, उसकी उसे महिमा आती है और वह मुझे चाहिये। ऐसा अन्दर-से समाया है। ऐसी रुचि साथमें होती ही है। ऐसी समझपूर्वक जिसे महिमा आये, उसे आत्माकी रुचि साथमें होती ही है।

आत्माकी रुचि साथमें न हो और अकेली महिमा करे तो वह सब समझे बिनाका है। अनादि काल-से जो मात्र रुढिगतरूप-से किया वैसा। देव-गुरु-शास्त्र आदरने योग्य क्यों है? कि उन्होंने आत्माका स्वरूप कोई अपूर्व प्रगट किया है, इसलिये। इसलिये उनका स्वयंको आदर है। अंतरमें अपना आदर अन्दर आ जाता है।

मुमुक्षुः- आत्माकी खटक रहती हो और महिमा आती हो, वही सच्ची महिमा है?

समाधानः- वही सच्ची महिमा है। उसे खटक रहती ही है। जिसे सच्ची महिमा आये उसे आत्माकी खटक साथमें होती ही है। तो सच्ची महिमा है।

गुरुदेवने मार्ग कितना स्पष्ट किया है। प्रश्न पूछे उसका उत्तर देती हूँ। मुमुक्षुः- गुरुदेवके शब्द बहुत गंभीर, इसलिये कुछ समझ ना सके। उनका गंभीर आशय समझ न सके, आपने गुरुदेवका हृदय खोला इसलिये हम बच गये।