Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-६)

१९६ क्षण-क्षणमें होती रहती है, अन्दर जो एकके बाद एक विकल्पकी जाल चलती है, उससे क्षण-क्षणमें भिन्न, धारावाही रूप-से भिन्न रहता है तो उसमें शरीर-से भिन्न तो आ ही जाता है। शरीर-से भिन्नता वह तो एक स्थूल है। उससे भी ज्यादा सूक्ष्म विकल्प-से भिन्नता है।

मुमुक्षुः- मानों कोई दूसरा विकल्प कर रहा हो, उतना भिन्न लगता है?

समाधानः- विकल्प-से मेरा स्वभाव भिन्न है। पुरुषार्थकी मन्दता-से होता है, परन्तु यह मेरा स्वभाव नहीं है। उससे भिन्न भेदज्ञान, ज्ञाताकी परिणति वर्तती है।

मुमुक्षुः- स्वभावमें एकत्व है इसलिये..

समाधानः- स्वभावमें एकत्व है, विभाव-से विभक्त है। जो विभाव-से विभक्त हुआ, वह शरीर-से विभक्त हो ही गया है। द्रव्यकर्म, भावकर्म, नोकर्म। भावकर्म- से भिन्न वर्तता है, वह द्रव्यकर्म, नोकर्म-से भिन्न ही वर्तता है। स्थूलता-से शरीर- से भिन्न, भिन्न ऐसा करे, और अन्दर-से भिन्न नहीं पडा तो वह वास्तविक भिन्न ही नहीं हुआ। कोई स्थूलता-से ऐसा कहे कि मैं शरीर-से भिन्न-भिन्न (हूँ)। परन्तु यदि विकल्प-से भिन्न नहीं परिणमता है तो शरीर-से भिन्न, वह मात्र अभ्यासरूप है।

मुमुक्षुः- तो चारित्रके दोषको अन्दर थोडा भी नहीं गिनना? समकित प्राप्त होनेमें श्रद्धानका ही दोष है?

समाधानः- सम्यग्दर्शन प्राप्त होनेमें श्रद्धाका ही दोष है। चारित्रका दोष तो उसके साथ-श्रद्धान सम्बन्धित स्वरूपाचरण चारित्र है वह आ जाता है। परन्तु उसे चारित्रमें गिननेमें नहीं आता है। वह श्रद्धामें ही कहनेमें आता है। चारित्रका दोष श्रद्धाको नहीं रोकता। श्रद्धाको श्रद्धाका दोष ही रोकता है। अनन्तानुबन्धी जो कषाय है, उस कषायको श्रद्धाके साथ सम्बन्ध है। वह श्रद्धा जिसकी बदले, उसे अनन्तानुबन्धी कषाय टल ही जाता है। उसे श्रद्धाके साथ सम्बन्ध है। इसलिये अनन्त काल-से श्रद्धाका दोष है।

मुमुक्षुः- तो संयम और नीतिको बिलकूल बीचमें लाना ही नहीं?

समाधानः- जिसे आत्माकी रुचि लगे, जिसे आत्मा ही चाहिये दूसरा कुछ नहीं चाहिये, उसे नीति आदि सब होता ही है। अमुक पात्रता तो उसे होती है। जिसे श्रद्धा पलट जाती है उसे अमुक जातका श्रद्धाके साथ जिसे सम्बन्ध है, ऐसी पात्रता तो होती है। पात्रताके बिना नहीं होता।

मुमुक्षुः- अविनाभावी कहें तो उसमें क्या दिक्कत है?

समाधानः- अविनाभावी तो है, परन्तु वह अनन्तानुबन्धी कषायके साथ सम्बन्ध है। उसे अप्रत्याख्यानी और प्रत्याख्यानीके साथ सम्बन्ध नहीं है। अनन्तानुबन्धी कषायके साथ सम्बन्ध है। इसलिये अमुक जातकी उसे पात्रता होती है। उसकी रुचि जहाँ पलटती