Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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अमृत वाणी (भाग-६)

२२६ स्वयं ही तुझे ज्ञात होगा। इससे जानना होता है, उससे जानना होता है, पर्याय-से जानना होता है, पर्याय-से जानना होता है, ऐसे क्यों लक्ष्य करना? तेरा ही अस्तित्व है और तू स्वयंको खोज ले।

ज्ञानलक्षण-से ज्ञायकको खोज ले। उसमें बाह्य आलम्बनके सब साधन गौण हो जाते हैं। साथमेंं हो तो तुझको स्वयंको मुख्य कर ले, उसको गौण कर दे, वह तेरे हाथकी बात है। किससे खोजूँ? पहले तो बाह्य आलम्बन होता है, निरालम्बन तो होता नहीं, कहाँ-से लाऊँ? परन्तु तू निरालम्बन है उसका नाश ही नहीं हुआ है। तू उसे मुख्य करके उस तरफ जा तो तू स्वयं ही है। ऐसी सब बातें करता है, तेरी मन्दताकी सब बातें हैं। तू पुरुषार्थ कर तो तू स्वयं ही है। तू तुझे मुख्य कर ले कि मैं ज्ञायक ही हूँ। मैं जाननवाला स्वयं ही हूँ। मेरा नाश नहीं हुआ है। तो ज्ञानलक्षणको मुख्य करके तू ज्ञायकको पहिचान ले। वह सब आलम्बन तो गौण हो जाते हैं। तू तेरा आलम्नब ले ले।

वह जब भी कर, उसे गौण तो करना ही है और वह तुझे ही करना है। वह पहले-से तो हुआ नहीं होता अनादिका। जब होता है तब तुझे ही गौण करना है और तुझे ही मुख्य होना है, इसलिये तू ही उसे मुख्य करके उसके आलम्बनको गौण करके और ढीला करके, तू मुख्य होकर अपने आपको खोज ले। जब भी कर, तुझे ही करना है। उसका आलम्बन पहले इससे करना पडेगा, उससे करना पडेगा, ऐसा क्यों? तू स्वयं ही है। उससे कहाँ करना है, जब कर तुझ-से ही करना है। ज्ञानलक्षणको तुझको स्वयंको ही मुख्य करना है। तू उसे मुख्य करके तू तेरे ज्ञायकको पहचान ले। आलम्बनको मुख्य क्यों करता है? आलम्बन आया तो निराल्मबन कैसे हुआ जाय? आलम्बनको गौण कर दे, तू स्वयं ही मुख्य है। वह कहाँ मुख्य थे। वह कहाँ जानते हैंं। जाननेवाला तो तू है। वह तो बीचमें आते हैं।

मन भी कहाँ जानता है और नेत्र भी कहाँ जानते हैं और कहाँ कौन जानता है? जाननेवाला तू और उसे तू बडा करके कहता है, उसके आलम्बन बिना ज्ञात नहीं होता। तू स्वयं ही जाननेवाला है, अपनी ओर मुड जा। बाहर जा रहा है उसके बदले तू तेरे द्रव्यको ज्ञानलक्षण-से खोज ले। तू स्वयं ही है।

मुमुक्षुः- स्वयंको ही खोजना है और स्वयं हाजिर ही है।

समाधानः- स्वयं हाजिर है और स्वयंको ही खोजना है। वह सब कहँ उसे रोकते हैं। वह रोकते नहीं है। तू स्वयं रुका है। तू ही स्वयं भिन्न पडकर अन्दर जा। अन्दर स्वयं परिणमित हो जाय, फिर निरालम्बन होता है, पहले कैसे हो? परन्तु जो निरालम्बन हुए वे पहले ऐसे ही थे, उसे गौण करके निरालम्बन हुए हैं। अतः आलम्बनको