Benshreeni Amrut Vani Part 2 Transcripts (Hindi).

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ट्रेक-

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(भक्ति करता है)। गुरुदेवकी अंतरंग दशा (देखकर कहे), उनका बाहरका भी ऐसा और अंतर (भी अलौकिक) ऐसा भक्तिभाव-से (कहे)।

भगवान समवसरणमें बैठे हो (तो कहता है), प्रभु! आपकी अंतरमें भी ऐसी परिणति और आपकी बाह्य शोभा भी अदभुत और सबकुछ अदभुत! भक्तिमें सब आवे। सब भक्तिमें आवे। परन्तु अंतरंग देखनेकी दृष्टि अंतरमें है। भक्तिभावमें सब आवे।

मुमुक्षुः- भक्तिमें तो वाणीकी महिमा भी करे, शरीरकी करे।

समाधानः- हाँ, शरीरकी करे, सब करे। गुरुदेवका प्रभावना योग कैसा, गुरुदेव तीर्थंकरका द्रव्य, आपकी मुद्रा कैसी, आपकी वाणी कैसी, वह सब भक्ति है। अंतरकी दशा अमुक देहातीत दशा दिखती हो, वह सब अमुक परीक्षा करके कहे वह अलग बात है। ... गुरुदेव, भगवान, मुनिश्वर अंतरमें क्षण-क्षणमें लीन होते हैं, जगत-से अलग दिखे, गुरुदेव जगत-से अलग दिखते थे। ऐसी परीक्षा करे वह अलग बात है।

मुमुक्षुः- कहनेमें आता है कि तू ज्ञानलक्षणको खोज। तो खोजनेके लिये उसके पास तो वर्तमानमें इन्द्रिय ज्ञान ही है। तो उसमें-से ही खोज ले न।

समाधानः- उसे दृष्टि अंतरमें करनी पडती है। इन्द्रिय ज्ञान भले हो, परन्तु स्वयं है न? अपना नाश तो हुआ नहीं है। इन्द्रिय ज्ञान हो तो वह ज्ञान कहीं उसमें घूस तो गया नहीं है। वह तो उस तरफ उसने मान्यता की है। उसमें परमें अपना घूस नहीं गया है। स्वयंका अस्तित्व कहीं नाश नहीं हुआ है। उसमें-से खोज ले, अर्थात तू स्वयं ही है। तेरी परिणतिको अंतर झुकाकर तू कौन है, यह खोज ले। उसमें बीचमें मन, इन्द्रियाँ सब आता है, उसे गौण करके तेरे ज्ञानको मुख्य करके तू ज्ञानलक्षण- से पूरे ज्ञायकको पहिचान ले।

उसे तू साथमें रख उसका मतलब इससे ज्ञात हुआ, इससे ज्ञात हुआ, ऐसी दृष्टि क्यों करता है? मुझे मेरे ज्ञान-से जानना होता है और ज्ञानलक्षण-से अन्दर देखनेका है। इसलिये उससे देखा वह तो साथमें आता है। इसलिये ऐसा कहनेमें आये कि इन्द्रिय ज्ञान-से जाना। परन्तु तू अंतर दृष्टि कर, तू स्वयं ही है, तू कहीं खो नहीं गया है। दूसरा साधन अर्थात स्वयं ही है, स्वयं ही अपना साधन है। अपना कहीं नाश नहीं हुआ है।

मुमुक्षुः- अपनी सत्ताका ही स्वीकार नहीं करता है। मूलमें ही तकलीफ है।

समाधानः- इससे देखना है न, इससे देखना है न। परन्तु तू स्वयं तेरे-से ही देख रहा है, वह तू देखता नहीं है। और इससे देखना है, इस आँख-से देखना रहा, मन-से देखना रहा, परन्तु तू स्वयं ही है। वह तुझे कहाँ ज्ञान करवाते हैं? तेरे ज्ञान- से, तेरे क्षयोपशम ज्ञान-से सब ज्ञात होता है। तू तेरे ज्ञानको तेरी ओर मोड तो तू