२४० आत्माकी परिणति कैसे प्रगट हो? उस बसपूर्वक दृष्टिकी परिणति होती है। आदमीने निर्णय किया कि यह एक ही (करना है)। आजुबाजुका कुछ नहीं, एक ऐसा ही करना है। वैसे उसके बल-से लीनताका और चारित्रका बल उसमें आता है।
मुमुक्षुः- ज्ञान भी वही बल करेगा न? ज्ञानमें भी वैसा ही बल होना चाहिये न?
समाधानः- ज्ञानमें बल है। ज्ञानमें सब जाननेमें आता है। ज्ञानमें बल आता है, दृष्टिमें बल आता है, परन्तु दृष्टिका बल अधिक आता है। अधिक है। ज्ञान सब पहलूको जानता है, जाननेका कार्य सब पहलूओंमें होता है कि यह अधूरा है, यह पूरा है, यह केवलज्ञान है, यह साधकदशा है, यह चारित्र है, ये गुणभेद है, ये पर्यायभेद है। ज्ञान सब जानता है, ये एक अखण्ड है। अखण्डका बल है ज्ञानमें, परन्तु वह सब जानता है। लेकिन जिसने एक ही ग्रहण किया है, ऐसी दृष्टि बलवान है।
मुमुक्षुः- अकारण पारिणामिक द्रव्य और केवलज्ञानमें सर्व पदाथाकी पर्याय उत्कीर्ण हो गयी है, इन दोनोंका मेल कैसे करना?
समाधानः- अकारण पारिणामिक द्रव्य, वह तो स्वतःसिद्ध जो अनादिअनन्त द्रव्य पारिणामिक स्वरूप है। स्वभाव जो है अनादिअनन्त स्वभावरूप है वह पारिणामिक स्वरूप है। और केवलज्ञान तो प्रगट पर्याय है। उसमें तो सामान्य पारिणामिक स्वभाव सामान्य रूप-से अनादिअनन्त कि जिसमें कोई भेद नहीं पडते, ऐसा पारिणामिकभाव अनादिअनन्त है। केवलज्ञान है वह प्रगट पर्याय है, लोकालोकको जानती है। निर्मल पर्याय केवलज्ञानकी लोकालोकको जानती है। भले उसे क्षायिक पर्याय कहते हैं, उसमें पारिणामिक साथमें है, परन्तु क्षायिक पर्याय कहते हैं, केवलज्ञानकी पर्याय है। पारिणामिकभाव तो अनादिअनन्त है और क्षायिक पर्याय केवलज्ञानकी पर्याय बादमें प्रगट होती है। वह अनादिअनन्त नहीं होती। ये तो अनादिअनन्त है, पारिणामिकभाव है।
निगोदमें गया तो भी पारिणामिकभाव तो अनादिअनन्त है। पारिणामिकभावरूप जो चैतन्य है, वह अनादिअनन्त है। और केवलज्ञान तो उसमें शक्तिरूप है। पुरुषार्थकी साधना- से केवलज्ञान प्रगट होता है। वह क्षायिक पर्याय है। वह लोकालोकको जानती है। स्वरूपमें वीतराग दशा हो गयी इसलिये उसका ज्ञान पूर्ण प्रगट हो गया। स्वरूपमें रहकर, स्वभावको जानता हुआ, लोकालोककी सर्व पर्यायें उसमें सहज ज्ञात होती है। वह उसकी प्रगटरूप-से सादिअनन्त पर्यायें प्रगट होती है। पारिणामिकभाव है वह तो अनादिअनन्त है।
मुमुक्षुः- पूछनेका प्रश्न यह था कि अकारण पारिणामिक द्रव्य यानी स्वतंत्र द्रव्य है या जैसे परिणाम करना चाहे वैसा स्वयं कर सकता है? उसका और केवलज्ञानका दोनोंका मेल कैसे है?
समाधानः- जैसा भाव करने हो वैसे कर सकता है। अकारण-उसमें कोई कारण