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नहीं लागू पडता। केवलज्ञानमें भी कोई कारण नहीं है। वह जो भाव करे उसमें कोई कारण लागू नहीं पडता। सब अकारणरूप-से परिणमते हैं।
मुमुक्षुः- केवलज्ञानीने जाना हो वैसा हो न। अकारण पारिणामिक कैसे रहा? अकारण पारिणामिक द्रव्य स्वतंत्र है और केवलज्ञानीने जाना हो वैसे परिणमे तो बँध गया।
समाधानः- केवलज्ञानीने जाना... केवलज्ञानीने इसलिये कहीं बँध नहीं गया। वह तो स्वतः परिणमता है। केवलज्ञानमें ऐसा ही ज्ञात हुआ है। केवलज्ञानीने जाना इसलिये स्वयं परिणमन न कर सके ऐसा नहीं है। स्वयं तो स्वतंत्र परिणमता है। केवलज्ञान उसे रोकने नहीं आता। केवलज्ञान केवलज्ञानमें है और स्वयं अपनेमें है। प्रत्येक द्रव्य स्वतंत्र है। केवलज्ञानीने जाना इसलिये वैसे परिणमना ही पडे, ऐसे द्रव्य कहीं पराधीन नहीं हो गया। केवलज्ञानने जाना इसलिये स्वयं उसके अधीन हो गया, ऐसा कुछ नहीं है। स्वयं स्वतंत्र परिणमता है। अपनी परिणति अपने-से होती है, केवलज्ञान उसे परिणमन नहीं करवाता। अपनी परिणति, कैसा परिणमन करना वह अपने हाथकी बात है।
स्वयं स्वभाव तरफ परिणमे, विभाव तरफ जाता है, वह सब अपनी परिणति तो स्वतः बदलता है। इसलिये पुरुषार्थ-से पलटना वह अपने हाथकी बात है। केवलज्ञानने जाना इसलिये उसके हाथमें है, ऐसा नहीं है। केवलज्ञानने जाना इसलिये उसके हाथमें है, ऐसा नहीं है। वह जिस स्वरूप पलटता है, वैसा केवलज्ञान जानता है। भले केवलज्ञानमें पहले-से ज्ञात हुआ हो, परन्तु पलटता है वह स्वयं अपने-से पलटता है। केवलज्ञानने जाना इसलिये वैसे ही परिणमना पडे, ऐसा उसका अर्थ नहीं है।
भले केवलज्ञानमें ज्ञात हुआ कि यह परिणमन ऐसे होगा। तो भी स्वयं ही परिणमता है। अपने पुरुषार्थकी गति-से स्वयं परिणमता है। स्वयं ऐसा माने के केवलज्ञानमें जैसा जाना वैसा होगा। ऐसा जो मानता है, उसका पुरुषार्थ उठता नहीं। जो ऐसा माने कि जैसे होना होगा वैसे होगा, उसका पुरुषार्थ (उठता नहीं)। पुरुषार्थपूर्वक जिसके ख्यालमें ऐसा रहता है कि मुझे पुरुषार्थ करना है, मुझे चैतन्यकी दशा प्रगट करनी है, ऐसी जिसे भावना रहे उसे ही केवलज्ञान और सब सुलटा जाना है। जिसके भावमें ऐसा रहे कि जैसे होना होगा वैसे होगा, उसकी परिणति केवलज्ञानीने वैसी ही जानी है।
जो परिणति पलटती है, उसे पुरुषार्थके साथ सम्बन्ध है। पुरुषार्थके सम्बन्ध बिना वह ऐसा माने कि पुरुषार्थ हो या न हो, ऐसे ही पलट जायगी। जो सहज परिणति प्रगट होती है अकारणरूप-से, वह पुरुषार्थपूर्वक पलटती है। उसे पुरुषार्थके साथ सम्बन्ध है। क्रमबद्ध और पुरुषार्थ दोनोंको सम्बन्ध है। अकेला क्रमबद्ध (नहीं है)। क्रमबद्धको पुरुषार्थके साथ सम्बन्ध है। पुरुषार्थ बिना क्रमबद्ध नहीं होता, वह सम्बन्धवाला है।